Rahul...

31 December 2010

यही उमीदों का सगुन होगा

सपने खिलेंगे फिर से..
जाते-जाते
जो दे गया..
कुछ निशानी..
कुछ गुलाब..
और.. शब्द भी
नए साल की झोली में
यही उमीदों का..
सगुन होगा
सपने खिलेंगे फिर से..
हजारों गुलाब
नींद के आँचल में
किसी की कहानी
 में जी उठेंगे
लोग मिलेंगे- जुदा होंगे
मिटटी का शायद
यही मौसम होगा
हम सबों का
अपनी-अपनी राहों पर
फिर से नया जतन होगा
नए साल की झोली में
यही उमीदों का..
सगुन होगा
                             राहुल

30 December 2010

तस्वीरों को बेरंग होते..

सदियों का मंजर.. आधी सी.. बेरंग सी
सदियों से
इस मंजर को
जीती तस्वीरें..
आधी सी
ग़ुम सी..
 नजर आ ही जाती है
अपने कई घरों में
रोज यह उदासी
तस्वीर में तब्दील होती रहती है ...
अपने सामने देखता रहता हूँ
तस्वीरों को बेरंग होते..
सदियों से कैद..
उनकी परछाई..
कितनी वेदना सहती रहती है..
अपने घर के मचान पर
कुछ पौधों की बेलें
आसमान को फिर से
ताक रही है..
कोई एक बेआबरू वक़्त
उसे जमीं पर समेट देता है
एक बार फिर से..
तस्वीरों को ख़त्म होते देखता हूँ
सच इतना हो सकता है कि.
सिर्फ शब्द  किस्सा नहीं बनते
सिर्फ शब्दों से सपने नहीं पनपते
जो यह मुमकिन होता....
तस्वीरें रंगों में भींगती
वेदना को पीकर
अपने सीने में चाँद उतारती
कुछ पौधों की बेलें
मेरे सारे घर पर
गुनगुनी धूप में नहाती
                                    राहुल

29 December 2010

पुराना साल.. नया साल

 अकेले हम.. न.. तनहा तुम..
वक़्त ढलने को है
समय पिघलने को है..
पुराना साल..
नया साल
कुछ किस्से
कुछ ख्वाब
मचलने को है..
न हम कभी अकेले थे 
न तुम कभी तनहा हुए
गर कुछ फासला था..
..तो
लम्हों का..
फिर वो पल
तेरा नाम
और...
कुछ.. बर्फ की आग 
जलने को है...
पुराना साल..
नया साल
कुछ ख्वाब
मचलने को है..
                                            राहुल

28 December 2010

कुछ अपना बताने को

रंग बाते करें.. और बात से खुशबू आये .. 
जब  कभी
रंग सैलाब सा मचलता है
मुझे मजबूर करता है
सुनने-सुनाने को
कुछ अपना बताने को
तो फीकी सी सफेद
मुस्कान समेटे मै
सवाल जुटाता हूँ
कई बार.. कई कैनवास
मैंने कई बार..
रंगों से बातें की..
पूछा.. उनके घर का पता
कैसे मिलूंगा तुमसे..
तेरे घर पर
रास्ते को जानता नहीं
यह तो पता है..कि
कभी बिखरा था
बीते हुए मौसम में
तेरे हाथ पर
कुछ सौगात रख दी थी
उसकी गूँज..
अब भी तड़पती हुई
कही तेरे घर के आसपास
तेरे क़दमों के करीब
हर दम दफ़न होती है..
मेरे रंगों को तो
इतना पता है
जब कभी
रंग सैलाब सा मचलता है
इतना कुछ दे जाता है
मै कहूँगा फिर से
तेरे-मेरे रंग
उसी रास्ते पर
एक- दूसरे का पता
मांगते- भटकते
बेनाम सफ़र में
विलीन होते रहते हैं...
                                      राहुल

26 December 2010

खिलती हुई धूप

कुछ भी अनायास नहीं.....
जो नहीं हो सकता
कभी-कभी..
मेरे सामने...
खिलती हुई धूप
चुप होती बारिश
परिंदों के पीछे
भागते बच्चे
हम तो एक साथ..
डूबने को उतरे
कई महासागर.. कितने हिमालय
पार नहीं पा जा सका
जब भी सामने हुए
चुप होती बारिश
परिंदों के पीछे
भागते बच्चे
और इतना सा कुछ
बाकी...
कुछ भी अनायास नहीं.....
तेरी मासूम हंसी सी
इबादत..
साथ जब भी हुए
तो..
डूबने को उतरे
कई महासागर.. कितने हिमालय
मगर..
जो नहीं हो सका
खिलती हुई धूप
चुप होती बारिश
परिंदों के पीछे
भागते बच्चे
यह मुकाम छूट गया
जबकि कुछ भी अनायास
नहीं था..
कभी-कभी..
मेरे सामने...
इतना ही हुआ
                                      राहुल

25 December 2010

ना कोई चेहरा..


राख में मिलती जन्नत
 जब भींगी आँखो से
तेरे सजदे में ..
कई हाथ अनायास
दुआ के लिए उठे.. तो
कातर होते मन में.
ना तो कोई नाम होता है..
ना कोई चेहरा..
समय के खाक होते
अलबेले पन्नों में
कुछ सूखे रंग.. तो
जरा.. जरा सी मदहोशियाँ
नींद से जगती है
वैसे.. दुर्गम वक़्त के दायरे में;;
जन्नत राख में मिलती है
और..तब
 ना तो कोई नाम होता है..
ना कोई चेहरा..
मेरे सलीब पर..
उगते.. पनपते..
नन्हे पौधों की कहानियां
कुछ अमिट सा..
तेरे बदन  की साँसों में
गूंजता है.. तब
ना तो कोई नाम होता है..
ना कोई चेहरा..
                                       राहुल

24 December 2010

कहने को तो..

लौटकर आ न सकूंगा.
अपनों सी मिलती..
 जिन्दगी में
फरेब से इन अंशों में
सिर्फ वादों का सितम है
कहने को तो..
जिन्दगी हरदम
गले लगाती है
शायद मान भी जाता हूँ
उस बच्चे की तरह..
जिन्हें सब कुछ
या.. कुछ नहीं
कई- कई बार..
ऐसा ही हुआ कि
अपनों सी जिन्दगी में
इतना ही दिखा..
जहाँ सब्र..की हद
चुप रही.. नम रही
मैंने तब कहा
लौटकर आ न सकूंगा.
कहने को तो..
जिन्दगी हरदम.. हरपल
खुद की दुविधा से
रोज मिलती है..
कई- कई बार..
ऐसा ही हुआ कि
अपनों सी उस  जिन्दगी में
ना तो  कोई सवाल...
ना ही कोई जवाब
बन सका..
 सितमगर वक़्त के वादों में
जो बैठा है..
फरेब  का अंश
बस उतना सा मुझे दे दो
फिर मान लूँगा
एक बार फिर
उस बच्चे की तरह
जो उम्मीदों में है
जो नादाँ सा मिजाज लिए..
फरेब से  अंशों में भी
सहज है.
पर..
लौटकर आ न सकूंगा.
और मान लूँगा
जिन्दगी हरदम.. हरपल
सब कुछ नियति भर है...
                                     राहुल

23 December 2010

निर्वाण की तलाश में


 उदास पेड़ की.. आस ...  
 ना तो वक़्त से मर्म है..
और ना ही कोई आस
एक बार..
मुझसे एक उदास पेड़ ने कहा-
कभी मै भी घिरा था
असमय के चिंतन से
कभी मेरे आँगन तले
जीते थे निर्दोष से मन
रात के सन्नाटे में
कुछ लोग सपना जीने लगे थे
सब कुछ यथावत.. सहज सा
निर्वाण की तलाश में
बाहें फैलाये खड़ा था
यह संघर्ष की..
बेला नहीं थी
मुझे समय ने
फिर उस मोड़ पर
रख छोड़ा..
जहाँ ख्वाब की दस्तक ने..
आवाज़ दी..
एक बार फिर उस पेड़ ने
कहा...
वो पल ख्वाब ही था ..
समय जो तुम छोड़ आये हो
उस छाए में मत जीना
 निर्वाण की तलाश में
भटकोगे.. तो
अगले संताप से शायद
अलग होगे....
                       राहुल

21 December 2010

तेरे लिबास पर

जब कभी काँटों से मिला तेरी रहगुजर में  
कुछ तो अच्छा हुआ...
और जो समझ पाया
तेरी रहगुजर में
कोई शर्त नहीं थी..
साथ-साथ मुस्कराने की..
..ना तो अब खलिश है..
तेरे लिबास पर
कुछ नज्म के अंश हैं
एक-दो गुलाब है
और.. हाँ
जंगल में विलीन होती..
परछाई..
आगे का शब्द
भूल रहा हूँ
तेरी रहगुजर में
कितना समय..
कितनी नदियाँ..
मौन थी
यह जान गया कि..
हमसब और ना समझे
बस..
उसको बेबस सा जी ले
तेरे लिए जो नज्म ..
अभी उगा है.. शायद
उस.. भोर में
इतना ही अंश फूटेगा
इतना ही शोर होगा
बस.. शायद
इतना ही समझ पाया......
                                                       राहुल 
                               
 

20 December 2010

अजनबियों जैसे..

अजनबियों जैसे होते...पत्ते
अजनबियों जैसे
होते गए..
तेरे सामने के पत्ते
क़दमों के नीचे की
जमीं.. और दूब
जाने-अनजाने से
टप-टप रिसता ..
शाम की बारिश
कभी ऐसा नहीं होता.
जब तुम अजनबी से लगते हो..
ऐसा भी नहीं होता
कि.. समय के पार
तेरा चेहरा..
तेरा जिस्म
 नहीं दिखता..
कभी ऐसा नहीं होता.
जब मै उस पल में
नहीं होता..
जो होता है..
जो आंच सुलगती है
तेरे सीने में
तेरी अजनबी सी लगती
शाम में
यह मान सकता हूँ
कुछ अजनबी सा
कुछ टूटता सा
मद्धिम सी आंच
हाहाकार..
हाहाकार..
इतना ही होता मै
समय के पार भी..
अजनबियों जैसे
अजनबी की तरह.....
                                      राहुल

19 December 2010

कसक...

जो रंग महका है
तेरे आँगन में
वहाँ घुला.. मिला है
मेरी कसक.

 रंग जो कसक का महका है.. तेरे आँगन में
तुम जो कभी थे
अपने आँगन में
कभी समेटता था..
हाथों पर..
तेरी चुप सी घुटन
सौ रंग..
सौ मौसम
और..
 हम दोनों की
कसक...


राहुल 

18 December 2010

कतरा-कतरा बनती कविता

कतरा-कतरा बनती कविता
अक्षरों  में ढलते पत्ते
कदम- कदम पर..
लरजता नीम शोर
मै-तुम .. और..
कतरा-कतरा बनती कविता
एक इमरोज- एक अमृता
कतरों में ढलती..
खामोशियों में डूबा 
एहसास..
मौसम..
तड़प..
चुपचाप सा..
 कतरा-कतरा बनती कविता
ना जाने..
कितने इमरोज
कितनी अमृता
बिखरे हुए..
बदहवास ज़माने से..
किनारा होते
ग़ुम से हो गए..
सिर्फ इतना ही निशां
बाकी रहेगा..
और ..
सिर्फ इमरोज.. सिर्फ अमृता
                                           राहुल

17 December 2010

यकीन....

बूँद सी जिंदगी...
जिन्दगी सी कविता
भ्रम सी  तेरी तन्हाई
बाकी सब..
ख़ामोशी के यायावर
तुम.. कभी
पलकों में सिमटी.. लिपटी
आसपास सी डोलती
मेरी यायावरी के संग
बूँद में समाहित होती रही
मेरा इतना यकीन था
हवा.. सपने.. नींद
तुम्हें बिठाएंगे
अपनी गोद में
कहानियां सुनायेंगे
इतना यकीन था....
तुम फिर मेरी साँसों में
दहकते.. मचलते
बूँद से जीवन में
टिकी रहोगी
कविता के शब्द
तुम्हें मनाएंगे
इतना तो यकीन....
करने दो.
                             राहुल 





बूँद सी जिंदगी... जिन्दगी सी कविता


15 December 2010

इतना शेष रखना

कहाँ-कहाँ से...
अलग करोगे
कैसे-कैसे दूर होगे
उस क्षितिज के पार
एक तिनका सा बचा हूँ
इतना शेष रखना
जब शाम तंग  हो...
मेरा नाम.
रहे.. ना रहे
अपनी छलकती हुई..
आँखों में
इतना शेष रखना
जब भोर मेरे
वजूद के रेत पर
मुक्कमल खड़ा हो
शायद ...
उस क्षितिज के पार
एक तिनका सा बचा हूँ
क्योंकि..
कहाँ-कहाँ से...
अलग करोगे
हजार रिश्तों में
बंधा हुआ हूँ मै ...
                            राहुल

14 December 2010

कोरा आसमान सा..

अपने  जैसा दरख़्त
कोरा आसमान सा..
ख़त का पूर्जा
थोड़ा बंद..
थोड़ा भींगा हुआ
जो सजा तुमने दी है.....
कितना सहेजूंगा
कभी ऐसा भी होता कि.
मेरे करीब होने की
आहट..
तुम सुन सकती..
कभी ऐसा भी होता कि..
आँखें ना सही..
सपनों में ही
रहने का आसरा देती.
कभी ऐसा भी होता कि..
अपने  जैसा दरख़्त
कभी बादलों को
चूमता..
कोरा आसमान सा..
मै.. मै ही होता
ख़त का पूर्जा
मेरे आँगन में खिलता
जो कभी ऐसा होता..

                                            राहुल






चुप रहना होगा..

इस जनम तो नहीं
कुछ कह सकूंगा
कुछ दे सकूंगा
और.. शायद
मिल सकूंगा
मै जानता हूँ
तेरी डोर...
तेरा द्वन्द
एक लकीर पर..
भोर की किरणें
आँखों में उतारने
को बेबस सा है
मुझे भी..
उस जनम तक
चुप रहना होगा..
मन को दफ़न करना होगा
जानता हूँ..
सदियाँ गुजर जाये
इबारत बदल जाये
मगर..
निर्मम से वक़्त में
एक..दो कतरा
हम दोनों का होगा
तुम तय कर लेना
मै.. तुम में ही मिलूंगा
                               राहुल

13 December 2010

सच्ची सायना

मंजिलें क्या है..
रास्ता क्या है ..
...गर हो हौसला
तो फासला क्या है....

12 December 2010

निर्जन मन

मै कभी यहाँ भी था..
जब नहीं थी .
पगडंडिया..
तन्हा रास्ते
शब्दों में घुलता
निर्जन मन
धुंध.. स्याह स्वप्न 
मै वहाँ  भी था..
जब नहीं था
विविध प्राणों का शोर
पत्थरों पर
उकेरी हुई चिंगारियां
अबोध प्यार का किस्सा
नींद में बुनता बचपन
मै सब में था
वक़्त ने कुछ
पदचाप सुने
कुछ नब्ज थमी
और..
मैं तब नहीं था
                          राहुल

10 December 2010

चुप सी लगी रहती है...

नदी जो सवाल करती है
चुपचाप.. अनवरत..
बहती जाती
बेख़ौफ़ इठलाती
मचलती
नदी जो सवाल करती है...
चुप सी लगी रहती है
अरमानों को दबा के
भूलते-बिसरते
बेआसरा होकर
ठिकाना तलाशते
नदी जो सवाल करती है...
समय जो पीर सा है..
सीने में चुभता ..
तेरा गुजरा  मरासिम
रात सी ढलती है
खिजां सी बिखरती है..
तुम इतना समझना सिर्फ.
कि..
मै बहता रहूँगा..
बिना किसी किनारे
चुपचाप.. अनवरत..
                                    राहुल

08 December 2010

..सिर्फ इतना देना

जन्नत में हूँ मै
तुम रखना अपने साये में..
 कि.... हर पल.. हर दिन..
यह तस्वीर बने..
जन्नत में हूँ मै
तुम रखना
हमेशा अपनी गोद में
जहाँ.. है मीठी नींद..
खूब सारी तितलियाँ..
सुनहरे बुलबुले
माँ..
मुझे यहीं रहने देना  ...
सिर्फ इतना देना
कि.
यही जन्नत..
हर जन्म में नसीब हो
                                     राहुल

तेरे सजदा में

कुछ खिले..
ओस की तरह
कुछ दिखे
मौसम सा
जो.. मन में
टूटता है
तेरे नाम का सजदा
..गर जिन्दा रहे तो क्या
जो मिट जाएँ हम तो क्या
मगर.. तय सा है
खिलेंगे..
हर बार तेरे सजदा में
इनकी तरह
                                      राहुल





06 December 2010

स्पर्श तेरा..

स्पर्श तेरा..
कितना एकाकार है..
जीवन दिया..
साँसे दी..
निगाहों में
जो सपने सजाये तुमने..
उसकी एक कतरन
भर ना बने यह पल
तुमने..
उम्मीद दी..
जज्बा दिया
युगों तक चलने का
स्पर्श तेरा..
कितना एकाकार है..
                               

तुम अपने आँचल में

शायद ठहर जाए
चाँद...जमीं..
और ..वक़्त की रफ़्तार
मगर...
एक निर्दोष मन का
अरमान न ठहर पाए
ना कोई तलाश बाकी रहे
ना कोई गुजारिश हो..
तुम अपने आँचल में
समेट लेना इतना..
कि..वक़्त को अपना
हर फैसला
वक़्त से पहले लेने की
आदत सी हो जाए
तेरे ईमान से जो
उम्मीद फूटी है..
वो सिर्फ तुम्हारी हो..
तेरे नाम हो
और उस सनातन पल में
हजारों मौसम
हजारों गुलाब
तुम अपने आँचल में
समेट लेना इतना..
कि..वक़्त को अपना
हर फैसला
वक़्त से पहले लेने की
आदत सी हो जाए
मन के गंगाजल से
निखरे तुम्हारा एहसास
तुम्हारी आत्मा..
तुम्हारी कायनात
कि..वक़्त को अपना
हर फैसला
वक़्त से पहले लेने की
आदत सी हो जाए
                                 राहुल

05 December 2010

सौ रिश्तों में भी...

तपती दोपहर सी है
लड़कियों की जिंदगी
जमीं पर उतरते.
डरी... सहमी सी
आसरा तलाशती
अपनों से भी पनाह मांगती है..
लड़कियों की जिंदगी
रिश्तों के सहरा में
डोर थामती.. भटकती
काँटों में लिपटी सी
मोक्ष मांगती
डरी... सहमी सी है
लड़कियों की जिंदगी
अरमानों का खून होते
तार-तार सी
बिखरती... संभालती
जर्जर सपनों को ढंकती
तपती दोपहर सी है
लड़कियों की जिंदगी
हर जमाने.. हर सदी में
जीवन का अवसान करती
सौ रिश्तों में भी 
अधूरी सी..ग़ुम सी रहती
चमकते कांच घर जैसा
बन कर रह जाती है..
लड़कियों की जिंदगी

04 December 2010

तमाम होती जिंदगी में...

कुछ रास्ते..
कुछ मंजिलें.
और..
कई बेनूर सी दुनिया..
एक मन संताप को
जीने वाला
जो नहीं था उसका
जो नहीं हो सका
किसी मिजाज का
और...
नहीं कर सका वो..
पूरी सदी को
पहनने वाला
समूचे आसमान को
अपने हाथों में
समेट लेने वाला
मिजाज
नहीं कर सका वो..
तमाम होती जिंदगी में
रोज गाथा..
गूंजती है
उस आम इंसान की
जो.. सभी का है
सभी में है..
और संग-संग है .

03 December 2010

हम .. तुम और...

सुकून की मद्धिम सी लय..
टूटती सिमटती है..
ये  मन के परिंदे है ..
जो उड़ान भरते हैं..
उस आकाश में..
जहाँ अनंत मौसम है.
बेहिसाब ख्वाब है..
और कभी.. कभी
तड़प की चुभन
गिरती.. बिखरती है..
ये  मन के परिंदे है ..
जो उड़ान भरते हैं..
उस आकाश में..
जहाँ सब निर्वात है
हम .. तुम और...
ये मासूम परिंदे
                                    राहुल

02 December 2010

अगर मायने बदलते....

...अगर मायने बदलते 
हम समेट सकते
तेरा नाम.. तेरा अश्क
तेरे सपनों में जो..
कभी हमराज था..
पलट कर..
लौटते थके..
बच्चों की मुस्कान जैसी
नन्ही कहानियां
माँ के दामन में
सुकून की छांव..मांगती
मेरी नींदें ..
...अगर मायने बदलते 
तो हम समेट सकते
तेरा नाम..
बच्चों की मुस्कान..
नन्ही कहानियां
और तेरा चेहरा भी..
                                    राहुल

29 November 2010

जब भी कुछ

तेरी  तस्वीर
लाजिमी सी रही ..
 हर पल यही हुआ
जब भी कुछ जीया..
अंतर्मन से जीया....
जब भी कभी
तुमसे कुछ...
कहा नहीं..
एक अर्जी रही..
एक रोमानी ख्वाब
बेमानी सा..चलता रहा
कही कुछ दहकता
तेरी उम्मीदों के
आगोश में
डूबता- निकलता
हर पल यही हुआ
जब भी कुछ जीया..
अंतर्मन से जीया....
शायद हो न सके
इस काबिल कि..
कभी कुछ कह सका
मैं खामोश रहा..
वक़्त सिमटता रहा..
मगर..
तेरी  तस्वीर
लाजिमी सी रही ..
और ...
जब भी कुछ जीया..
अंतर्मन से जीया....
 

28 November 2010

सजा

जीते रहने की सजा
कब तक.. कब तक
तुमसे कभी कहा था..
कि..
अब जो मिसाल है
वो एक ख्वाब है
कभी तड़पती..
मचलती हसरतें..
नहीं दे सका तुम्हें
एक मुट्ठी आसमान..
 मिजाज के दो नज्म ...
जीते रहने की सजा
कब तक.. कब तक
तुमसे कभी कहा था..
कि..
तुम्हारा सवाल 
मेरा जवाब
कहीं नहीं था

26 November 2010

स्मिता को सलाम

वक़्त टूट सा गया

कुछ वक़्त टूट सा गया ....
साँसे.. सैलाब
काँटों में लिपटी
गुलाबों की नर्म महक
जैसे हर पल..
दम बिखरता
स्वप्न..
.. टूट सा गया ....
परिंदों की लय.
हाथों में सिमटी
पूरी जन्नत..
टूट सा गया ....
मैं शायद
अब नहीं
कि..
स्वप्न..
खो सा गया है
साँसे.. सैलाब
और तुम्हारी
कुछ कतरनें
सिर्फ...
बिखरने को है ...

22 November 2010

माँ तुम...आज भी

माँ तुम सब जानती हो
कभी जिद.. गुस्सा
और तुम्हारा मनुहार
कुछ ख्याल सा
नींद में जागते
मेरे कदम ..
कहाँ  उठे.. कहाँ गिरे
माँ तुम सब जानती हो
जब कभी
थका सा टूटा
तुमने कुछ सहेज दिया
बिना कुछ..
एक शब्द
माँ तुम सब जानती हो
जब नहीं था
मेरा आँगन..
मेरी छाया
एक लम्हा भी नहीं
जी सका ..
तब तुमने ..
कहा था.. कि
भींगी सी जमीन
शाम सी नमी..
बस इतना ही
हो सकता तेरा..
माँ तुम...
आज भी सब जानती हो
                                            राहुल
                                   

20 November 2010

नामुमकिन सा है

निगाहों में शिकन
को बहने दो...
लग के साहिल से
चुभता है धुआं
उसे..
सिर्फ बहने दो
कागजों की किश्तियाँ
कितनी दूर
कब तक
उसे..
सिर्फ बहने दो
दो पल के लिए...
जानता हूँ
नामुमकिन सा है
लौटना..
कागजों की किश्तियाँ
कितनी दूर
कब तक

पानी सा तेरा नाम

नहीं सोचा था
दूर तक..
तेरा रंजोगम
खिलते गुलाब
पानी सा तेरा नाम
ख्वाब सा हो जायेगा
नहीं सोचा था
माटी के लोग
उम्मीद बेहिसाब
और..
पानी सा तेरा नाम
ख्वाब सा हो जायेगा
नहीं सोचा था
चाँद की परियां
दादी का किस्सा
और..
पानी सा तेरा नाम
ख्वाब सा हो जायेगा

18 November 2010

कभी तो ऐसा हो ....

कभी तो ऐसा हो ....
कि..
तुमसे कह सकूं
माँ के बारे में
धूप में बरसता
टूटता उनका मन
तुम सुन सको
उन्हें ..
कभी तो ऐसा हो ....
कि..
कागज़ की दुनिया में
कदम उठे तेरे ...
जहाँ हजारों
गुनगुनाते मौसम
जर्जर पत्तों की
बेलौस सी
बहकती रंगत
कभी तो ऐसा हो ....
कि..
तुमसे कह सकूं
 तेरे हाथ की
नरमी..
सदियों के बाद भी
मेरे आसपास
कैद है..
कभी तो ऐसा हो ....
                                             Rahul

17 November 2010

एक शोर उठा पानी

रोज शाम के जागते
अँधेरे में..
तुम्हारी सांस
की खनक पर
एक शोर उठा पानी
सुबह के सोते
उनींदे सपने
खाक में मिटने की
लगन तक
एक शोर उठा पानी
                                   Rrahul

...तब तक

रेत की दुनिया
रेत के सपने
हाथों से फिसलता ..
पिघलती रेत के नगमे
तब तक रहूँगा..
तेरी आँखों में
जब तक
बच्चे बनाते रहेंगे
रेत के घर
पानी के मकान
और...
नाजुक खिलखिलाहट

15 November 2010

अब यही मुनासिब है..

तेरी सुबह का
एक मोती
मेरी हथेलियों पे
टिका रहा
उस विरानी शाम तक
जैसे वीरान
एक जंगल...
कुछ मंजर ..
और . ..
तेरी सुबह का
एक मोती
जब लरजती धूप
बरसी... तो
विरानी शाम
कुछ मंजर
और . ..
तेरी सुबह का
एक मोती
गुनगुनाने की जिद में
मुद्दतों तक
तेरी मोती को समेटता रहा
अब यही मुनासिब है..
एक जंगल...
कुछ मंजर ..
और कुछ ..
विरानी शाम
                      Rahul

14 November 2010

राख में लिपटी....

तेरे मन की भूल को
देखा.. परखा..
राख में लिपटी....
कायनात
तुम्हारी सुबह...
तुम्हारी शाम..
मान लो जैसे
एक बच्चा
माँ के आँचल
में ...
ग़ुम सा बेसुध
अलसाया सा
लेटा हो..
शायद
राख में लिपटी....
कायनात
मद्धिम आंच पर
अनवरत..
अनादिकाल तक
ग़ुम सा बेसुध
अलसाया सा
लेटा हो..
तुम्हारी सुबह...
वो बच्चा..
और..
राख में लिपटी....
कायनात
यथावत रहे..
                 राहुल

तुम्हारे लिए ....

इश्तिहार सा  चिपका
बेजान सा वो किस्सा ..
तेरे मन की धूप में
सराबोर हो गया
तेरे पैरों की रंगत
घुल गयी...
सदमा सा वो वक़्त
बेरहम सी हंसी
तेरे मन की धूप में
सराबोर हो गया
तुम्हारे लिए ....
मेरे  अंजुमन में
नहीं था तो...
एक कोरा सुख
मासूम पानी के बुलबुले
और ...
बेजान सा वो किस्सा ..
जो कुछ था
जैसा भी था
आईने सा बिखरा था
तुम्हारे लिए..
कितना शब्द ..
कितनी यात्रा
सदमा सा वो वक़्त
बेरहम सी हंसी
                       राहुल

13 November 2010

..भींगी रात

..भींगी रात
..निशब्द मन
सिर्फ मौन.. सिर्फ मौन ...
सहेज लो.. कुछ बात
 निशब्द मन
हर पल.. ख़ास पल
सहेज लो.. कुछ बात
मुमकिन सी रात
बस भींगी रात
ओस में नहाती बात ...
एक कदम ... दो कदम
तेरे संग ..
टूटी रात.. बिखरी रात 
सहेज लो.. कुछ बात
                                        राहुल

12 November 2010

एहसान इतना सा कर दे ....

कुछ कहना था तुमसे
सहेज कर ...
तेरे पन्नों को
छुपा दिया था...
अब नहीं
कभी नहीं
तेरी दी हुई सौगात
वापस करना है मुझे..
निर्वात..
चुप्पी..
और ...
तेरे लबों की ख़ामोशी... 
अब नहीं
कभी नहीं
एहसान इतना सा कर दे ....
मुझे फिर तनहा सा कर दे
कुछ कहना था तुमसे
                                   Rahul

kharna ka prasad

09 November 2010

अनंत उर्जा.... असीम आनंद.... 

सूर्य की किरण बिखरेगी

आज से छठ शुरू
उगता सूरज देता है
एक नई उर्जा ..
असीम आनंद
सोच... संस्कार.. स्वभाव..
और जीवन..
सबको
उगता सूरज देता है
एक नई उर्जा ..
असीम आनंद
भोर की किरण..
एक नए समय
नए जीवन..
नयी उम्मीद
उगता सूरज देता है
एक नई उर्जा ..
असीम आनंद
                         राहुल

तेरे आने तक......

कोई एक सवाल
जो जेहन में...
युगों तक मन के रंगों में
घुलमिल जाए...
शायद वक़्त थम सा जाये
तुमने जो एक लकीर
मेरे दामन में
कभी थमा दिया था...
तेरे आने तक
टूट कर बिखर जाए...
मैं सपनों में नहीं..
तेरे पन्नों में नहीं
शायद समय की रेत पर
तेरे आने तक..
खुद का अक्स तलाशता
मिल जाऊँगा..
तेरी एक नज्म...
मेरे आँगन में
उम्मीद की..
साँसों को जी ले
तेरे आने तक
पतझर जी उठेगा..
                               राहुल

08 November 2010

अपने-अपने मौसम...

आसान नहीं है...
मौसम का मान लेना
तुम कह तो दो..
शायद कुछ बूँद
बिखर जाए...
आसान नहीं है...
मौसम का मान लेना
तुम पलट कर ...
अपनी आँखों में
कुछ नमी तो सहेज लो
शायद कुछ
मासूम सपने फिर से.
गूँज उठे ....
मैं  अपने मौसम के साथ
खुद की तलाश में
कई सदियों तक खामोश
रह सकता हूँ..
यह वक़्त शायद मेरा नहीं...
                                   राहुल.........
                    

07 November 2010

मेरे पास है ....

उम्मीद की हद...
दामन में कुछ ...
बिखेर गया
तेरा नाम ... तेरा चेहरा
... और टूटती साँसे ..
जिंदगी के उलझे पल
यही कुछ मेरे पास है ....
                              rahul

please accept

तेरे साथ...
तेरे बाद...
कुछ शब्द
कुछ पल ..


राहुल