Rahul...

03 December 2010

हम .. तुम और...

सुकून की मद्धिम सी लय..
टूटती सिमटती है..
ये  मन के परिंदे है ..
जो उड़ान भरते हैं..
उस आकाश में..
जहाँ अनंत मौसम है.
बेहिसाब ख्वाब है..
और कभी.. कभी
तड़प की चुभन
गिरती.. बिखरती है..
ये  मन के परिंदे है ..
जो उड़ान भरते हैं..
उस आकाश में..
जहाँ सब निर्वात है
हम .. तुम और...
ये मासूम परिंदे
                                    राहुल

1 comment:

  1. मन के परिंदे ...बेहिसाब ख्वाब .. बहुत सुन्दर लिखते हैं आप . अच्छा लगा .

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