तेरी तस्वीर
लाजिमी सी रही ..
हर पल यही हुआ
जब भी कुछ जीया..
अंतर्मन से जीया....
जब भी कभी
तुमसे कुछ...
कहा नहीं..
एक अर्जी रही..
एक रोमानी ख्वाब
बेमानी सा..चलता रहा
कही कुछ दहकता
तेरी उम्मीदों के
आगोश में
डूबता- निकलता
हर पल यही हुआ
जब भी कुछ जीया..
अंतर्मन से जीया....
शायद हो न सके
इस काबिल कि..
कभी कुछ कह सका
मैं खामोश रहा..
वक़्त सिमटता रहा..
मगर..
तेरी तस्वीर
लाजिमी सी रही ..
और ...
जब भी कुछ जीया..
अंतर्मन से जीया....
अंतर्मन झलकता है ....... बहुत अच्छी रचना ...
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