शायद ठहर जाए
चाँद...जमीं..
और ..वक़्त की रफ़्तार
मगर...
एक निर्दोष मन का
अरमान न ठहर पाए
ना कोई तलाश बाकी रहे
ना कोई गुजारिश हो..
तुम अपने आँचल में
समेट लेना इतना..
कि..वक़्त को अपना
हर फैसला
वक़्त से पहले लेने की
आदत सी हो जाए
तेरे ईमान से जो
उम्मीद फूटी है..
वो सिर्फ तुम्हारी हो..
तेरे नाम हो
और उस सनातन पल में
हजारों मौसम
हजारों गुलाब
तुम अपने आँचल में
समेट लेना इतना..
कि..वक़्त को अपना
हर फैसला
वक़्त से पहले लेने की
आदत सी हो जाए
मन के गंगाजल से
निखरे तुम्हारा एहसास
तुम्हारी आत्मा..
तुम्हारी कायनात
कि..वक़्त को अपना
हर फैसला
वक़्त से पहले लेने की
आदत सी हो जाए
राहुल
कि..वक़्त को अपना
ReplyDeleteहर फैसला
वक़्त से पहले लेने की
आदत सी हो जाए
काश ! ऐसा ही होता..रोक रही है पंक्तियाँ ..