Rahul...

22 March 2011

छोटी सी इबादत- 7

एक बूँद.. दो बूँद.. और न जाने कितना बड़ा समंदर.. कांच के इस पार की दुनिया.. अनचाहे पत्थरों की मार से बचती हुई.. रूक-रूक कर सांस लेती हुई.. देखना तुम.. बाहर का मौसम.. बाहर की हवा तेरे जेहन में पैबस्त न हो जाये......
 नीला आसमान.. कच्ची धूप.. और कांच के इस पार छनकर आती हुई तेरे भींगे हुए चेहरे की चटक यादें.. मै नहीं जानना चाहती आगे का कुछ भी.. फिर से मायने तलाशने की ललक.. तुम ही तो कहते थे... तेरे बगैर... तेरे बिना तपती हुई रेत पर नंगे पांव.. अनर्थ सा.. बेमजा.............
दोहरी जिन्दगी... जो कह दिया.. मान लिया.. अरे हाँ.. माँ भी कहती थी... शीशे की दीवार पर तेरे जैसा एक हमशाया दिखने लगा है.. बूंदों की दुनिया से वापस लौट सको तो लौट आना... अब कांच की दीवारों पर भी दूब की लत्तर उगने  लगी है..... 
                                                         आगे और भी.......                                 राहुल
                            
                  

नम सी तड़प

कितना सा गुजर गया..
बस इतना सा गुजर गया
वक़्त जो तेरा-मेरा था....
किस गली में ठहर गया

तेरे जो किस्से थे..
मेरी भी कुछ बातें थी..
बस दो बूँद सी कुछ रातें थी..
न जाने कहाँ  बिखर गया..

खामोश पहर का सन्नाटा.
मेरी पलकों पर पसर गया..
नम सी तड़प तेरी यादों का
मेरे शब्दों में संवर गया

कितना सा गुजर गया..
बस इतना सा गुजर गया
वक़्त जो तेरा-मेरा था....
किस गली में ठहर गया
                                                   राहुल

18 March 2011

होली में इतना ही...

रंग बातें करें...
बातों से खुशबू आये.....
दर्द फूलों की तरह महके
जो तू आये..............
                                        राहुल