Rahul...

24 December 2010

कहने को तो..

लौटकर आ न सकूंगा.
अपनों सी मिलती..
 जिन्दगी में
फरेब से इन अंशों में
सिर्फ वादों का सितम है
कहने को तो..
जिन्दगी हरदम
गले लगाती है
शायद मान भी जाता हूँ
उस बच्चे की तरह..
जिन्हें सब कुछ
या.. कुछ नहीं
कई- कई बार..
ऐसा ही हुआ कि
अपनों सी जिन्दगी में
इतना ही दिखा..
जहाँ सब्र..की हद
चुप रही.. नम रही
मैंने तब कहा
लौटकर आ न सकूंगा.
कहने को तो..
जिन्दगी हरदम.. हरपल
खुद की दुविधा से
रोज मिलती है..
कई- कई बार..
ऐसा ही हुआ कि
अपनों सी उस  जिन्दगी में
ना तो  कोई सवाल...
ना ही कोई जवाब
बन सका..
 सितमगर वक़्त के वादों में
जो बैठा है..
फरेब  का अंश
बस उतना सा मुझे दे दो
फिर मान लूँगा
एक बार फिर
उस बच्चे की तरह
जो उम्मीदों में है
जो नादाँ सा मिजाज लिए..
फरेब से  अंशों में भी
सहज है.
पर..
लौटकर आ न सकूंगा.
और मान लूँगा
जिन्दगी हरदम.. हरपल
सब कुछ नियति भर है...
                                     राहुल

2 comments:

  1. sir mai aap sabhi chij ko itne gahrayi se sochte hai ....aur unhe un feelings ke sath likhate hai ----- bahut achchha lagta haa......
    Rahul sir iske liye bahut bahut dhanyvad.....

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