Rahul...

22 May 2011

छोटी सी इबादत - 10

 
मौसम ...  जो इस बार आया और चुपके से चला भी गया .....न तुम कुछ कह सके .. न वो कुछ याद दिला पाया... पर कुछ साथ चिपक सा गया ... जेहन में ... ये बताने को कि हम किसी वक़्त के यायावर सा तुम्हे देखते और खोजते रहेंगे ..... कोई एक दिन ही तो होता है ... समेटने को ... खुद को भिंगोने और कही डुबो देने को ... शायद वो भी नहीं एक पल के कतरे में कितना एहसास सिला हो गया .... तुम जब देखोगे ... फुरसत में ...बंद आँखों से .... हमने तो वो भी कहीं खो दिया... धीमी सी ... सिली ... सी आंच पर कोई तुम्हे पिछले जन्मों से एहसान बटोरने वाला आदमी मानकर खोजता फिर रहा है .... कुछ दुबिधा तुमने तय कि ......जैसे सब कुछ कोई और किसी का अकेला हो... मैं ऐसा तो नहीं जानता...फिर ऐसा मौसम ... बारिश .....बूँदें ......आएगा नहीं ....तुम कही और होगे और मुझे इतना मालूम है कि तुम सबको माफ़ कर दोगे......मै ठीक   जानती हूँ .......तुम ऐसा ही करोगे ....... 
                                        अभी और भी .............राहुल

02 May 2011

राजेश के लिए

प्रिय राजेश,
                     उम्मीद है आप सानंद होंगे. काफी अरसे बाद याद करने के लिए धन्यवाद. मुझे बहुत अच्छा लगा आपका कमेंट्स देखकर. सच कोई मेरे शब्दों और उसके इर्द-गिर्द की दुनिया को इस कदर नोटिस लेता है. कभी- कभी यकीन नहीं होता. आपने मेरी कविताओं को पढ़कर जो भी अबतक मतलब निकाला, वो मेरे लिए अमूल्य है. इस बात को कहने में मुझे कोई भूमिका बनाने की जरुरत नहीं है. मुझे सचमुच बहुत अच्छा लगा.........
राजेश, मैंने अपने अपने लिए कोई लकीर तय नहीं की. यही वजह है कि मेरे जैसे लोगों का अंजाम कभी अपने मुकाम तक नहीं जाता. अधूरा रह जाता है.. इसके बावजूद चलते रहते हैं....जहाँ तक मेरे शब्द और उसके घेरे का सवाल है तो हम इतना ही कहेंगे कि वो सभी मेरे साथ हमेशा साये की तरह मुझसे लगे रहते हैं...कौन अपने अतीत को अपने साथ जिन्दा रखना चाहता है ? कोई भी नहीं.....मै भी नहीं..मगर  मेरा बहुत कुछ उसी में जिन्दा है. सबकुछ तो नहीं कह कह सकते....
... हमने कभी कुछ तय नहीं किया. हमेशा ये सोचा कि मुझे क्या नहीं करना है ? क्योंकि ... मुझे क्या करना है.. ये तो मुझे पता है. यहाँ हर रिश्ता आपसे समर्पण की उम्मीद करता है. माँ-पिताजी, भाई-बहन, पति-पत्नी और जाहिर है बच्चे... ये सभी रिश्ते आपसे अपने होने का एहसास दिलाते हैं और बदले में जाने-अनजाने कुछ उम्मीद कर बैठते हैं. ऐसा होता रहा है और सब दिन होगा....... मैंने भी यथासंभव उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश की है. कितना क्या हुआ, ये नहीं जानते.... हाँ.. एक चीज़ और..  ये जीवन उनका है... जिसने जीवन दिया...मेरा इस पर कोई हक नहीं.... मै २४ घंटे इस बात पर अमल करता हूँ....
अब बात उनकी जो चुपचाप आपके सफ़र में शामिल हो गए.. न कोई रिश्ता, न कोई नाता...मगर आपके हो लिए.. तो सदा के लिए.... अब उनकी व्यथा, मेरी व्यथा..
राजेश... जब बहुत बहुत महीन धागे को सुलझाना होता है तो काफी धीरज और हौसले से उस धागे का एक सिरा खोजना पड़ता है. नजर नीची करके सुनना पड़ता है. ये बहुत आसान नहीं है... इसमें कई सदी  लग सकती  है. हमने कभी भी अपनी तारीफ़ के लिए शब्दों को नहीं लिखा. कभी भी नहीं.. ये कोई काल्पनिक या फिर कुछ नाम-दाम बटोरने का जरिया नहीं रहा... ये एकदम नितांत निजी और निजी.
राजेश, आप kaise galat हो सकते हैं ? और मै kaise आप को ignore कर du.
                                                                                                                  Rahul..