Rahul...

15 December 2010

इतना शेष रखना

कहाँ-कहाँ से...
अलग करोगे
कैसे-कैसे दूर होगे
उस क्षितिज के पार
एक तिनका सा बचा हूँ
इतना शेष रखना
जब शाम तंग  हो...
मेरा नाम.
रहे.. ना रहे
अपनी छलकती हुई..
आँखों में
इतना शेष रखना
जब भोर मेरे
वजूद के रेत पर
मुक्कमल खड़ा हो
शायद ...
उस क्षितिज के पार
एक तिनका सा बचा हूँ
क्योंकि..
कहाँ-कहाँ से...
अलग करोगे
हजार रिश्तों में
बंधा हुआ हूँ मै ...
                            राहुल

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