अपने जैसा दरख़्त
कोरा आसमान सा..
ख़त का पूर्जा
थोड़ा बंद..
थोड़ा भींगा हुआ
जो सजा तुमने दी है.....
कितना सहेजूंगा
कभी ऐसा भी होता कि.
मेरे करीब होने की
आहट..
तुम सुन सकती..
कभी ऐसा भी होता कि..
आँखें ना सही..
सपनों में ही
रहने का आसरा देती.
कभी ऐसा भी होता कि..
अपने जैसा दरख़्त
कभी बादलों को
चूमता..
कोरा आसमान सा..
मै.. मै ही होता
ख़त का पूर्जा
मेरे आँगन में खिलता
जो कभी ऐसा होता..
राहुल
आहट..
ReplyDeleteतुम सुन सकती..
कभी ऐसा भी होता कि..
आँखें ना सही..
सपनों में ही
रहने का आसरा देती.
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जीवन एक आशा है ..विशवास है ....बहुत सुंदर ..शुक्रिया