Rahul...

24 March 2012

जो दुपट्टा ख़रीदा है ..

सिमटी..सहमी
बातों की पोटली लिए
हम कारवां होते गए
शब्दें राह चलती गयी
नहीं था नाम सड़कों का
मकानों से भी
गायब थी तख्तियां
तेरे लिए
जो दुपट्टा ख़रीदा है ..
सिमटी.. सहमी
बातों की पोटली में
कसमसाती रही धूप
उस दुपट्टा छूने को
बस कोई..
शब्द पीछे रह गया
गायब तख्त्तियों वाले
अनसुने मकानों में
पड़ाव डाले शब्द
जागते रहे
बस कोई...
आलिंगन चुभती रही
तेरे दुपट्टे को..
हमने जस का तस
रख छोड़ा है..
सजिल्द..और
उमस से बचाकर
शब्दें राह चलती गयी  
हम तो कारवां होते गए

                                                    राहुल

07 March 2012

कुछ सच्चे रंग

तेरे-मेरे
कुछ कच्चे रंग
अधूरा सा ...
अबोध सा...
हाथों में
सना हुआ
रात में
गुनता हुआ
भोर की किताब में
भूला सा...
भटका सा..
तेरे मेरे
कुछ कच्चे रंग
चिट्ठी के अधरों पर
बिना पते का
बेनाम सा
आँगन की मिट्टी में
चूल्हे की फरियाद सा
कच्चे-पके
आंच सा
तेरे-मेरे
कुछ सच्चे रंग

.......................राहुल