माँ तुम सब जानती हो
कभी जिद.. गुस्सा
और तुम्हारा मनुहार
कुछ ख्याल सा
नींद में जागते
मेरे कदम ..
कहाँ उठे.. कहाँ गिरे
माँ तुम सब जानती हो
जब कभी
थका सा टूटा
तुमने कुछ सहेज दिया
बिना कुछ..
एक शब्द
माँ तुम सब जानती हो
जब नहीं था
मेरा आँगन..
मेरी छाया
एक लम्हा भी नहीं
जी सका ..
तब तुमने ..
कहा था.. कि
भींगी सी जमीन
शाम सी नमी..
बस इतना ही
हो सकता तेरा..
माँ तुम...
आज भी सब जानती हो
राहुल
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