कतरा-कतरा बनती कविता
अक्षरों में ढलते पत्ते
कदम- कदम पर..
लरजता नीम शोर
मै-तुम .. और..
कतरा-कतरा बनती कविता
एक इमरोज- एक अमृता
कतरों में ढलती..
खामोशियों में डूबा
एहसास..
मौसम..
तड़प..
चुपचाप सा..
कतरा-कतरा बनती कविता
ना जाने..
कितने इमरोज
कितनी अमृता
बिखरे हुए..
बदहवास ज़माने से..
किनारा होते
ग़ुम से हो गए..
सिर्फ इतना ही निशां
बाकी रहेगा..
और ..
सिर्फ इमरोज.. सिर्फ अमृता
राहुल
.....वाह ! ..ग़ुम से हो गए पर प्यार को तो जी लिए.. जमाने को बताना जरुरी तो नहीं..
ReplyDeleteimroj aur amrita se kahin aage..bahut aage..
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