Rahul...

23 December 2010

निर्वाण की तलाश में


 उदास पेड़ की.. आस ...  
 ना तो वक़्त से मर्म है..
और ना ही कोई आस
एक बार..
मुझसे एक उदास पेड़ ने कहा-
कभी मै भी घिरा था
असमय के चिंतन से
कभी मेरे आँगन तले
जीते थे निर्दोष से मन
रात के सन्नाटे में
कुछ लोग सपना जीने लगे थे
सब कुछ यथावत.. सहज सा
निर्वाण की तलाश में
बाहें फैलाये खड़ा था
यह संघर्ष की..
बेला नहीं थी
मुझे समय ने
फिर उस मोड़ पर
रख छोड़ा..
जहाँ ख्वाब की दस्तक ने..
आवाज़ दी..
एक बार फिर उस पेड़ ने
कहा...
वो पल ख्वाब ही था ..
समय जो तुम छोड़ आये हो
उस छाए में मत जीना
 निर्वाण की तलाश में
भटकोगे.. तो
अगले संताप से शायद
अलग होगे....
                       राहुल

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