Rahul...

12 December 2010

निर्जन मन

मै कभी यहाँ भी था..
जब नहीं थी .
पगडंडिया..
तन्हा रास्ते
शब्दों में घुलता
निर्जन मन
धुंध.. स्याह स्वप्न 
मै वहाँ  भी था..
जब नहीं था
विविध प्राणों का शोर
पत्थरों पर
उकेरी हुई चिंगारियां
अबोध प्यार का किस्सा
नींद में बुनता बचपन
मै सब में था
वक़्त ने कुछ
पदचाप सुने
कुछ नब्ज थमी
और..
मैं तब नहीं था
                          राहुल

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