कुछ वक़्त टूट सा गया ....
साँसे.. सैलाब
काँटों में लिपटी
गुलाबों की नर्म महक
जैसे हर पल..
दम बिखरता
स्वप्न..
.. टूट सा गया ....
परिंदों की लय.
हाथों में सिमटी
पूरी जन्नत..
टूट सा गया ....
मैं शायद
अब नहीं
कि..
स्वप्न..
खो सा गया है
साँसे.. सैलाब
और तुम्हारी
कुछ कतरनें
सिर्फ...
बिखरने को है ...
fnbnn
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