Rahul...

18 February 2012

मेरी राख में ढल जाओगे

सिर्फ तेरे..
शब्दों में होती हूँ
मनमुक्त गगन में
जीती हूँ........
बात टूटी बातों का
साथ अधूरी रातों का
तेरी कायनात में
रोज ढलती हूँ..
मनमुक्त गगन में
जीती हूँ........
मौन दरिया आँखों का
किस्सा खालिश किस्सा हूँ
तुम मानो..या
फिर ना मानो
पूरा तेरा हिस्सा हूँ
बस..कही नहीं
मै होती हूँ.. 
मनमुक्त गगन में
जीती हूँ........
अलग कहाँ हो पाओगे
क्या..सच में जी पाओगे
मेरी राख में ढल जाओगे
तेरी उमस में
पिघलती हूँ..
मनमुक्त गगन में
जीती हूँ........

                                                                      राहुल ...

  

08 February 2012

....जब नज्में तुम्हारी

कई बार...
जागते-जागते 
जब नज्में तुम्हारी 
जुदा हो जाती है..
खुद तुम से...
गीली- गीली उदासियाँ
और... 
मुक्त होने की याचना 
उसी फरियाद की तरह 
मुझसे आकर मिलती है..
जहाँ कहानियाँ..
तुम्हारी नज्मों में 
ढलने को बेताब
हाथ जोड़े...
मुझसे विनती करती है 
नज्में तुम्हारी 
हमारी आह से..
चुपचाप..
मेरी कहानियों का 
पन्ना...चुराती हुई
गायब हो जाती है
मैंने कहीं सुना था 
किसी दरिया के समंदर में 
मिलने तक...
नज्म जिन्दा रहती है  
सच ही सुना था 
तुम.. तुम्हारी नज्में 
मेरी शापित कहानियों को 
 छोड़कर... 
कैनवास फिर भी...
दीवार पर टंगी रह जाती है..
जब नज्में तुम्हारी 
जुदा हो जाती है..
खुद तुम से...
                                  

06 February 2012

धुआंती आँखों को

-->
दुःख सबकी नहीं होती
इसकी गलबहियां सब से
नहीं जमती
आदि कथा में
डगमगाते क़दमों
को थामते
गिरकर उठने
और....
फिर से गिरने का दुःख
धुआंती आँखों को 
सोखते  माँ के आँचल में ... 
बंधा खाली लिफाफा 
 हर बार बैरंग आसरे
..को गले लगाती 
 अपने हिस्से का दुःख......
दरकते आइनों से 
तरुणाई को नापती
सरपट भागती बेटी...
कांपती आँखों में
अनमने अंदेशे को जीते 
पिता की आँखों का दुःख
चूल्हे की बुझती राखें 
 
फिर से...
गमजदा होते भूखे बर्तन 
इतने के वाबजूद
जब बीते खड़े पहाड़ 
हर रात सामने आते हैं 
बिना बताये...
कई बार सच में 
इसकी गलबहियां
सबसे नहीं जमती
दुःख तो हमारी माएं जीती है
दुःख तो हमारी माएं सीती हैं 
उसी आँचल में
जिसमे बंधा होता है
धुआंती आँखों को
सोखता..
बंधा खाली लिफाफा

                                                            राहुल.......