तेरे मन की भूल को
देखा.. परखा..
राख में लिपटी....
कायनात
तुम्हारी सुबह...
तुम्हारी शाम..
मान लो जैसे
एक बच्चा
माँ के आँचल
में ...
ग़ुम सा बेसुध
अलसाया सा
लेटा हो..
शायद
राख में लिपटी....
कायनात
मद्धिम आंच पर
अनवरत..
अनादिकाल तक
ग़ुम सा बेसुध
अलसाया सा
लेटा हो..
तुम्हारी सुबह...
वो बच्चा..
और..
राख में लिपटी....
कायनात
यथावत रहे..
राहुल
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