Rahul...

08 November 2010

अपने-अपने मौसम...

आसान नहीं है...
मौसम का मान लेना
तुम कह तो दो..
शायद कुछ बूँद
बिखर जाए...
आसान नहीं है...
मौसम का मान लेना
तुम पलट कर ...
अपनी आँखों में
कुछ नमी तो सहेज लो
शायद कुछ
मासूम सपने फिर से.
गूँज उठे ....
मैं  अपने मौसम के साथ
खुद की तलाश में
कई सदियों तक खामोश
रह सकता हूँ..
यह वक़्त शायद मेरा नहीं...
                                   राहुल.........
                    

1 comment:

  1. बहुत अच्छी रचना ........ अच्छा लगा . हाँ वर्ड वेरिफिकेसन हटा दें तो अच्छा रहेगा .

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