Rahul...

30 May 2013

दार्जिलिंग डायरी-3


...अब चौरास्ता की आपाधापी से बाहर निकलते हैं... दार्जिलिंग में कई ऐसी जगह है, जहाँ जाने के बाद आपको कुछ ख़ास व संतोषजनक न लगे..अगर आपने पहले से पता नही किया तो  गाड़ी वाले आपको खूब चकमा देंगे... सेवन पॉइंट घूमाने के नाम पर वे आपसे मनमाने पैसे वसूल लेंगे.. चाय बागान दिखाने के बदले वे ऐसी जगह ले जायेंगे, जहाँ कुछ भी नहीं होता...
     सिंघमारी में रोपवे से घूमना निश्चित तौर पर एक रोमांचक अनुभव का एहसास कराता है.. प्रसिद्ध संत जोसफ स्कूल जहाँ हमेशा हिंदी व बांग्ला फिल्मों की शूटिंग चलती रहती है, के अलावा पद्मजा नायडू जूलोजिकल पार्क, तिब्बती शरणार्थी कैम्प, गोरखा स्टेडियम व बौद्ध मठ, ये कुछ ख़ास जगह है दार्जिलिंग की...
पद्मजा नायडू जूलोजिकल पार्क में पूरी दुनिया से टूरिस्ट आते हैं सिर्फ एक चीज को देखने को, और वो है लुप्तप्राय प्रजाति का  रेड पांडा... रेड पांडा यहाँ के अलावा और कहीं नहीं आपको दिखाई देगा... इसेक साथ ही हिमालयन रेंज के कुछ अति दुर्लभ वन्य प्राणियों को आप यहाँ देख सकते हैं...इस जूलोजिकल पार्क में जीव जंतुओं के साथ पर्वतारोहण से जुड़ा एक संग्रहालय भी है.. यहाँ पर आपको पर्वतारोहण के बारे में बेहद ही दिलचस्प किस्म की जानकारी मिलेगी....इसके अलावा  यहाँ से कुछ दूरी पर सिंगालीला नेशनल पार्क है.....आप वहां भी घूम सकते हैं....टॉय ट्रेन में सफ़र के बिना दार्जिलिंग में सैर-सपाटे की चर्चा हमेशा अधूरी रहेगी..बच्चों का तो ये मनपसंद ड्रीम है ही... इस टॉय ट्रेन के न जाने कितने किस्से फिल्मों और कहानियों में गढ़े गए, पर आज टॉय ट्रेन वाकई टूरिस्टों को उस तरह से सैर करा पाता है ? जवाब होगा - नहीं.... जून 2009 के पहले तो काफी हद तक मामला ठीक ठाक था... तब टॉय ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी से चलकर सिलीगुड़ी जंक्शन, सुकना, रंगतंग, तीनधरिया, गयाबारी, महानदी, कर्सियांग, टंग, सोनादा व घूम होते  हुए दार्जिलिंग पहुँचती थी..मगर चार साल पहले रंगतंग और तीनधरिया के बीच पाग्लाझोड़ा में भारी भूस्खलन होने के कारण लगभग 200 मीटर रेल ट्रैक गहरी घाटी में बैठ गयी.. तब से लेकर अब तक टॉय ट्रेन की सेवा बाधित है.. अब यह ट्रेन सिर्फ सिलीगुड़ी जंक्शन से रंगतंग तक और इधर दार्जिलिंग से कर्सियांग तक जाकर लौट आती है... नॉर्थ फ्रंटियर व   दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे के आलाधिकारी चाहे जितनी कोशिश कर लें, पर करोड़ों खर्च कर भी उक्त जगह पर फिलहाल रेल ट्रैक नहीं बना पायेंगे... हकीकत में पाग्लाझोड़ा की भौगोलिक दशा भूस्खलन से बेहद ही खराब हो गयी है...
           मेरे ख्याल से दार्जिलिंग में अगर सबसे ज्यादा आकर्षित करने वाली कोई जगह है तो वो है टाइगर हिल...सूर्योदय का बिहंगम और रोमांचक नजारा देखने के लिए जिस तरह से देशी-विदेशी पर्यटकों की भीड़ टूटती है, वो काफी अलहदा होता है... इसके साथ ही सूर्य की नवजात किरण जब कंचनजंघा की सफ़ेद संगमरमरी चोटियों पर पड़ती है तो बस सब कुछ खामोश हो जाता है..वो पल थम सा जाता है...  दार्जिलिंग आने के बाद टाइगर हिल या फिर दूर जगहों पर जाने के लिए मैं अपने दो ड्राइवर दोरजी तमांग और रणजीत शर्मा की सेवा लेता था.. दोरजी तमांग मूल रूप से गोरखा है और दार्जिलिंग का ही रहने वाला है .. वह गप करने में खूब माहिर है..उसकी एक खूबी और है.. वह बहुत सुन्दर तरीके से मैथिली भाषा में बातचीत करता है... जबकि रणजीत शर्मा का पुश्तैनी घर बिहार के वैशाली जिले में जन्दाहा के पास है... लेकिन अब वो पूरी तरह से दार्जिलिंग में ही बस गया है ...जहाँ एक तरफ दोरजी तमांग के पास आल्टो कार है, वहीँ दूसरी ओर रणजीत के पास टवेरा है... पर दोनों के ड्राइविंग स्किल्स बेहद ही अलग-अलग है... जब मैं पहली बार दार्जिलिंग गया था तो रणजीत ही मुझे सब जगह ले गए थे. उसी समय से हमारी उनसे जान-पहचान हो गयी थी..बाद के दिनों में भी हम उनकी गाड़ी रिज़र्व कर दूर-दराज आते-जाते रहते..चौक बाजार की भीड़-भाड़ से लेकर दुर्गम घाटियों और खतरनाक सड़कों पर गाड़ी चलाते हुए मैंने रणजीत को काफी करीब से देखा.. मुझे याद आ रहा है कि एक बार जामुने जाने के दौरान किस तरह उन्होंने एक बाइक सवार को बचाया था.. संयोग से हमारी गाड़ी के पीछे कोई गाड़ी नहीं थी, अगर पीछे से जरा सा भी धक्का लग जाता तो हम सब हजारों फीट खाई में डूब जाते... मगर रणजीत की सूझ-बूझ से अनहोनी टल गयी थी..
  नवम्बर के महीने में जब दार्जिलिंग से दूर गोरूबथान नामक एक जगह पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का वार्षिक सम्मेलन कवर करने के लिए गया था तो रणजीत शर्मा ही वहां ले गए थे.. काफी खतरनाक रास्तों से होते हुए वहां पहुंचे थे.. मुझे थोड़ा डर भी लगा था, जबकि हमारी हालत देखकर रोबिन साहब मुस्कुरा रहे थे. वहीँ रणजीत काफी निश्चिंत होकर इलाके के बारे में बता रहे थे...
         अब जरा दोरजी तमांग की चर्चा हो जाए..वो 4 अगस्त का दिन था और जीटीए का शपथ ग्रहण समारोह कवर करने मैं दार्जिलिंग पहुंचा हुआ था... शपथ ग्रहण समारोह के बाद मैंने 5 अगस्त को रोबिन के साथ अगले दिन टाइगर हिल जाने का प्रोग्राम बनाया.. रणजीत से बात करने पर पता चला कि उसे कुछ विदेशी टूरिस्टों को लेकर अगले दिन गंगटोक जाना है ... ऐसी स्थिति में समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए ? मैंने रणजीत से ही कहा कि कोई ठीक-ठाक ड्राइवर व गाड़ी हो तो बात कीजिये... दो-तीन दिनों से खूब बारिश हो रही थी.. शपथ ग्रहण के बाद  ठीक शाम के वक़्त चौक बाजार में बाटा शोरूम के सामने मैं और रोबिन पकौड़े का आनंद ले रहे थे... तभी रणजीत दोरजी को लेकर मेरे पास आये और बताया कि कल टाइगर हिल जाने का कितना पैसा लोगे ? वे दोनों नेपाली भाषा में बात कर रहे थे.. अंत में मामला 700 में तय हुआ.. जब दोरजी को ये पता लगा कि मेरा घर पटना है तो उसने  कहा कि ओ भाई, मेरे घर के बगल में भी तो एक झा जी रहते हैं, जो बिहार के हैं... उसके बाद तो दोरजी मैथिली में ही बोलने लगा, जबकि मैं टूटी-फूटी ही मैथिली जानता था.. रोबिन साहब ने मुझसे पूछा कि ये कौन सी भाषा है, तब मैंने कहा कि मैथिली एक मीठी मगर दिलफरेब भाषा है... मेरी बात को बिना समझे ही अपनी आदत के मुताबिक़ उन्होंने राईट-राईट कहा... उसी  वक़्त ये तय हुआ कि सुबह  साढ़े तीन बजे  दोरजी  पहले रोबिन  साहब के घर जाएगा,  उसके  बाद वो मेरे  गेस्ट हाउस आएगा ..  हालांकि न चाहते हुए भी  रोबिन साहब मेरी  जिद के कारण साथ चलने को तैयार हो गए थे ..दोरजी ने बताया कि सुबह चार बजे यहाँ से निकलना होगा..और आप अपना फ़ोन नंबर दे दीजिये... मैं सुबह में कॉल कर दूंगा.. मैंने कहा, ठीक है.. थोड़ी देर में रोबिन अपने घर चले गए, और मैं अपने गेस्ट हाउस आ गया..मैंने शपथ ग्रहण समारोह की रिपोर्ट जल्दी से तैयार कर मेल कर दिया..उसके  बाद  रात में फिर एक बार बाहर निकला.  भारी बारिश के कारण पूरा दार्जिलिंग पानी में सराबोर हो गया था... ठण्ड भी काफी बढ़ गयी थी.. ऐसी स्थिति में उससे बचने के लिए मेरे पास सिर्फ एक ही जैकेट था.. मुझे लगा कि इससे तो काम चलेगा नहीं.. दार्जिलिंग में कोई भी मौसम हो, अगर बारिश हो गयी तो ठण्ड का हाल पूछिए मत... गेस्ट हाउस लौटने के बाद मैंने सोचा कि रात में यहाँ तो कोई दिक्कत नहीं है, पर सुबह चार बजे तो ठण्ड से जान ही चली जायेगी..एक मन हुआ कि टाइगर हिल का प्रोग्राम रद्द कर दें, फिर सोचा कि चलो देखते हैं, जो होगा सो होगा... खैर...रात में सोने से पहले मैंने भी अपना अलार्म लगा दिया.. 
        सुबह ठीक चार बजे दोरजी ने मुझे फ़ोन किया... मैंने कहा, कहाँ हो ? दोरजी बोल मैं आपके गेट पर हूँ भाई.. आप बाहर निकालिए... मैंने कहा-रोबिन साहब हैं न गाड़ी में... तो उसने कहा- हाँ जी... वो बैठे हैं गाड़ी में... मैं तब जल्दी से रूम का ताला बंद कर बाहर निकला.. थोड़ी सी बूंदाबांदी हो रही थी.. गेट से बाहर निकल कर गाड़ी के पास पहुंचा तो देखा कि रोबिन साहब एक अजीब रंग के जैकेट में खुद को लपेट-सपेट कर पीछे की सीट
पर बैठे हैं ... उन्हें देखकर मुझे थोड़ी सी हंसी आ गयी...वे कुछ-कुछ भालू की तरह दिख रहे थे.. मैं आगे की सीट पर बैठा... दोरजी ने गाड़ी आगे बढ़ाई... रोबिन से बात करने के लिए मैं पीछे मुड़ा... बंद गाड़ी में कुछ अजीब किस्म की महक तैर रही थी..तो बात समझते देर न लगी.. उन्होंने अपनी दिनचर्या की बोहनी कर दी थी.... मैंने कहा-क्या रोबिन साहब ? अभी इस वक़्त ..... बात आई-गयी हो गयी... दोरजी की सफ़ेद रंग की आल्टो कार कीचड़ और पानी भरे सड़कों पर आगे बढ़ती जा रही थी... दार्जिलिंग रेलवे स्टेशन से आगे बढ़ने के बाद तो गाड़ियों का काफिला देख मैं दंग रह गया... चमचमाती हेडलाइट्स में कुछ अजीब रफ़्तार से गाड़ियां दौड़ रही थी.. बारिश व सड़कों की हालत उतनी ठीक न होते भी सभी गाड़ियां एक दूसरे को पीछे छोड़ती हुई भागी जा रही थी... ऐसे में दोरजी भला कहाँ पीछे रहने वाला था.. ? उसने अपनी आल्टो को ऐसी रफ़्तार दी कि बस..... मैंने दोरजी से कहा कि ऐसा लोग क्यों कर रहे हैं ?  अभी तो बहुत समय है सनराइज में .. दोरजी ने बताया कि बात वो नहीं है... टाइगर हिल में गाड़ियों की पार्किंग बड़ा प्रॉब्लम है जी... अगर आप लौटते हुए फंस गए तो .....दोरजी की बात समझ में नहीं आई... करीब आधे घंटे के बाद घुमावदार चढ़ाई भरे रास्तों से जब टाइगर हिल पहुंचे तो चारों तरफ अँधेरा था और काफी भीड़ लगी हुई थी...दोरजी ने गाड़ी पहले ही रोक ली और कहा कि मैं यहीं पर रहूँगा.....टिकट कटाने के बाद  रोबिन मुझे एक दूसरे रास्ते से ऊपर ले गए...  मुझे अब एहसास हो रहा था कि ठण्ड अन्दर से चुभ रही है... ऊपर जाने के बाद काफी संख्या में विदेशी टूरिस्ट नजर आये... रोबिन साहब ने कहा कि अभी तो बादल नहीं है..पर कोई जरूरी नहीं...कि  सनराइज दिखे... वैसे आज लगता है कि सनराइज दिख जाएगा..
            सारे लोग उस हसीन मंजर का इन्तजार कर रहे थे... मेरी भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी...सनराइज देखने से पहले ही लोग रोमांच में पागल हुए जा रहे थे.. जैसे-जैसे सनराइज का समय नजदीक आ रहा था, वैसे-वैसे आसमान की रंगत बदल रही थी.. सच कहा जाए तो उस पल का वर्णन नहीं किया जा सकता है... थोड़ी देर में ही सूर्य की मासूम सी किरण पहाड़ों को चूमने लगी... कंचनजंगा की चोटी पर मानो जैसे स्वर्ण कलश बैठा दिया गया हो... जैसे-जैसे रौशनी फ़ैल रही थी, वैसे-वैसे प्रकृति अपना दामन  दूर तक बढ़ा रही थी....एकदम दिलकश..... तब मुझे लगा कि दार्जिलिंग में इससे ज्यादा बढ़िया टूरिस्ट स्पॉट कुछ भी नहीं है.....
            वहां से निकलने के बाद मैं और रोबिन जल्दी से नीचे आये और दोरजी को फ़ोन किया... कुछ ही देर में वह गाड़ी के पास पहुंचा और जल्दी से बैठने को कहा..वह काफी तेजी से गाड़ी चला रहा था... मैंने कहा, दोरजी थोड़ा धीरे चलो... पर वो कहाँ सुनने वाला था ? वो अपनी धुन में था.. रोबिन साहब ने कहा कि जब आप यहाँ आये हैं तो बताशे भी चलिए, उसे देख लीजिये... मुझे उसके बारे में जानकारी थी, पर वहां पहले नहीं गया था. बतासी  यानी टॉय ट्रेन का लूप लाइन सेंटर, एक खूबसूरत पार्क और गोरखा शहीदों का स्मृति स्थल.. वहां पहुँचते ही मैंने देखा कि धूप थोड़ी और खिल गयी है और कंचनजंगा अपने पूरे रंग में है... रोबिन वहीँ पार्क की एक बेंच पर बैठ गए और मैं पार्क के चारों तरफ टहलने लगा.. वहां से दार्जिलिंग का मनमोहक नजारा साफ़-साफ़ दिख रहा था..गनीमत थी कि बारिश बिलकुल ही बंद हो गयी थी, नहीं तो सार जतन बेकार जाता...बहरहाल, बतासी  घूमकर जब वहां से निकले तो चाय स्टाल देख कर रहा नहीं गया...दस रुपए में चाय और बीस में कॉफी... मैंने रोबिन से कहा कि चाय पी लेते हैं... रोबिन ने हामी भरी.. वहां पर काफी भीड़ लगी हुई थी.. दरअसल टाइगर हिल से लौटते हुए लगभग सभी टूरिस्ट बतासी जरूर आते हैं .... चाय की पहली सिप लेते ही मन पूरी तरह कसैला हो गया... मैंने चाय वाले से कहा- ये कौन सी चाय है ? ये तो एक रुपए में भी महँगी है... चाय वाले ने कहा-यहाँ यही मिलेगा ..... समझ गया कि जिसको जहाँ मौका मिलता है ...बस लूट लेता है... मेरे साथ कई और लोग भी उससे उलझ गए... पर वही बेशर्म सा जवाब... तो ये दार्जिलिंग का हाल है...... ?? खैर किसी तरह वहां से छूटने के बाद जब चौक बाजार से थोड़ा पहले गोयनका पेट्रोल पंप के पास पहुंचे तो दोरजी ने वही किया, जिसका मुझे डर था. उसने तेजी से गाड़ी बढ़ाने के चक्कर में एक मारुति वैन को पीछे से धक्का मार ही दिया...मारुति का ड्राइवर भी गोरखा ही था... दोनों आपस में भिड़ गए..पर किसी तरह रोबिन ने मामले को सुलझाया....
   आखिरकार जब हमदोनों गेस्ट हाउस पहुंचे तो ढंग की चाय नसीब हुई...थोड़ी देर की गपशप के  बाद रोबिन साहब अपने घर चले गए.. मैंने दोरजी को पैसे देकर विदा किया और फ्रेश होने चला गया... उसी दिन मुझे सिलीगुड़ी भी लौटना था... 
क्रमश...

              


          


13 May 2013

दार्जिलिंग डायरी - 2

चौरास्ता के मंच पर सफेद जैकेट में गोजमुमो सुप्रीमो विमल गुरुंग, ममता बनर्जी व गौतम देव

चौरास्ता में स्कूली बच्चों का  रंगारंग कार्यक्रम
...चौरास्ता में इसके अलावा भी बहुत कुछ होता रहता है. आप इसे दार्जिलिंग शहर का ह्रदय स्थल कह सकते हैं. यहाँ पर एक बड़ा सा मंच भी बना हुआ है. समूचे दार्जिलिंग की सांस्कृतिक गहमागहमी आपको इसी मंच पर देखने को मिलेगी. हालांकि शहर के गोरखा रंग मंच और जिमखाना क्लब में भी इस तरह के आयोजन होते रहते हैं.. लेकिन ज्यादातर स्कूल-कॉलेजों के साथ-साथ सरकारी विभागों के रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन चौरास्ता के  मंच पर ही होता है. इसके अलावा किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े नेताओं-मंत्रियों का सम्मेलन भी यहीं आकर साकार रूप लेता है.. हालांकि चौरास्ता में हर दिन कुछ न कुछ नाच-तमाशा चलता रहता है. इस लिहाज से भी सुरक्षा का पुख्ता प्रबंध किया जाता है... शहर के अन्य हिस्से की तुलना में चौरास्ता काफी संवेदनशील इलाका माना जाता है... आम दिनों में भी दार्जिलिंग पुलिस की गाड़ियाँ गश्त करती नजर आती है... अब तो जाकर हालात काफी ठीक हो गए हैं.. चौरास्ता में एक नामचीन हस्ती की कांस्य प्रतिमा विराजमान है. नाम है उनका कवि भानुभक्त...ये वही भानुभक्त हैं जिन्होंने संपूर्ण रामायण का नेपाली भाषा में अनुवाद किया और अमर हो गए..
रोबिन साहब के मुताबिक़  2007 के पहले स्थिति काफी बदतर थी, जब हिल में सुभाष घिसिंग का बोलबाला था. हिल की अराजक स्थिति से लोग तंग आ चुके थे. सरकारी पैसे की लूटखसोट अपने चरम पर थी. कही भी एक रत्ती का काम नहीं हो रहा था. जीएनएलऍफ़ में विद्रोह का स्वर गूंजने लगा था.. उसी विद्रोह की चिंगारी से विमल गुरुंग नाम का एक शख्स निकला.. गुरुंग ने मौके की नजाकत को देखते हुए नई पार्टी का एलान कर दिया... गोजमुमो के अस्तित्व में आते ही घिसिंग और दार्जिलिंग गोरखा पार्वत्य परिषद् दुबकते चले गए.... आज हकीकत ये है कि दार्जिलिंग में विमल गुरुंग की मर्जी के बिना कुछ भी नहीं हो सकता.. गुरुंग की लोकप्रियता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन्हें नेपाल के सर्वॊच्च नागरिक सम्मान पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. आज मोर्चा सुप्रीमो गुरुंग के सामने भी हर तरह की चुनौतियां है.. गुरुंग की वेशभूषा को देखकर हर कोई यही कहेगा कि ये आदमी फिल्मों में दिखने वाला कोई तानाशाह या सरगना टाइप की चीज है..पर ऐसा है नहीं.. इसमें कोई संदेह नहीं कि गोजमुमो को मुकाम दिलाने में गुरुंग ने खूब मेहनत की  है. पार्टी की केंद्रीय समिति और संगठन में गुरुंग की ही चलती है. गोजमुमो के महासचिव रौशन गिरी की भी चर्चा करना यहाँ जरुरी है.. आप इन्हें गोजमुमो का थिंक टैंक कह सकते हैं. इसके अलावा गोजमुमो का एक स्टडी फोरम भी है, जिसमें कुछ दिग्गज लोग पर्दे के पीछे रणनीति बुनते रहते हैं. इस स्टडी फोरम में आर्मी के सेवानिवृत ऑफिसर व अन्य महारथी शामिल हैं.
पिछले एक साल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नॉर्थ बंगाल  समेत दार्जिलिंग का १२-१३ बार दौरा किया..  खासकर अगस्त-२०१२ में जीटीए (gorkhaland territorial administration ) बनने के बाद ममता ने इन इलाकों के लिए कई तरह के आर्थिक पैकेज की घोषणा की.. दरअसल मुख्यमंत्री बनने के बाद ही ममता बनर्जी ने गोरखालैंड और नार्थ बंगाल में फिर से उठ रहे राजनीतिक भूचाल को शांत करने के लिए कई अहम् फैसले लिए..
जीटीए बनने से पहले ममता बनर्जी जानती थी कि सालों से की जा रही गोरखालैंड की मांग को लेकर कुछ कूटनीतिक फैसले लेने ही होंगे...वही हुआ भी..
वे जब भी दार्जिलिंग आतीं, उसे कवर करने की जिम्मेवारी मेरे सिर पर होती.. मेरे साथ अक्सर मेरे फोटो जर्नलिस्ट पुलक कर्मकार/अजय साहा होते.. नॉर्थ बंगाल में ममता बनर्जी के एक ख़ास मंत्री हैं ...गौतम देव... नॉर्थ बंगाल उन्नयन विकास मंत्रालय का प्रभार इन्ही के पास है.. मीडिया के भाई-बंधुओं को लाने-लेजाने का पूरा इंतजाम गौतम देव ही करते.. हालांकि हम अपने ऑफिस की व्यवस्था पर ही ज्यादा निर्भर करते, पर ममता के काफिले में हमें भी शामिल होना पड़ता.. दरअसल कोई नहीं जानता कि सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग की ओर निकलने के बाद उनका कारकेड कहाँ रूक जाएगा ?... सड़कों के किनारे खड़ी महिलायें, बच्चे ममता की एक झलक पाने को उमड़ पड़ते... ऐसे में निश्चित तौर पर वे गाड़ी से उतर कर सबसे मिलती-जुलती...अगर आसपास उन्हें कोई दुकान दिख गया तो चॉकलेट खरीद कर बच्चों में बांटने से वे अपने को रोक नहीं पातीं.. मैंने उन्हें काफी करीब से देखा है ये सब करते हुए... राजनीतिक ताने-बाने से अलग होकर अपने नाम के हिसाब से वे भीड़ में शामिल हो जातीं और बच्चों को गोद में उठाकर दुलार-प्यार करतीं. तब मैं उनके चेहरे को पढ़ने की कोशिश करता. एक साथ कई रंग उभरते...अग्निकन्या के इस अवतार को देख मैं मुग्ध हो जाता..  उन्होंने कभी भी धूप, बारिश, बेमेल मौसम व  सुरक्षा प्रोटोकॉल की परवाह नहीं की. उनके साथ चलने वाले सुरक्षा दस्ते को सब कुछ संभालने में काफी मशक्कत करनी पड़ती... फिर भी वे निडर, निर्भीक, दिलेर शेरनी की तरह चलती.
उनका रात्रि प्रवास  दार्जिलिंग के रिचमंड होटल में ही होता.. बाकी का कुनबा सर्किट हाउस में टिकता...मीडिया गैलरी में अक्सर उनके भाषण को लेकर पत्रकारों के बीच खूब बहस चलती.. ममता बनर्जी ने कभी भी अपने भाषणों में गोल-मोल या समझौतावादी रूख नहीं अपनाया. उनके भाषणों या घोषणाओं को लेकर अंग्रेजी के कुछ पत्रकार वेदर फोरकास्ट की तरह तरह-तरह के कयास लगाते और अगले ही पल बैकफुट पर आ जाते... दार्जिलिंग के डीएम डॉ. सौमित्र मोहन जो मूल रूप से पटना के ही रहने वाले हैं, वे ममता के ख़ास व पसंदीदा लोगों में से एक माने जाते हैं.. डॉ. मोहन सब चीजों पर बारीकी से नजर रखते... वे डीएम के अलावा जीटीए के मुख्य सचिव भी हैं.. ममता के दार्जिलिंग दौरे पर आते ही हिल की राजनीति में सरगर्मी आ जाती व गोरखालैंड की आवाज उठने लगती..जबकि हर कोई ये जानता था कि जीटीए बनने के बाद ये फिलहाल सम्भव नहीं है.. मगर विरोधी दल गोजमुमो पर दबाव बनाने से बाज नहीं आते.. खैर..
चौरास्ता के मंच से ममता बनर्जी जब अपना भाषण शुरू करतीं तो अपने अंदाज में लहराते हुए सब कुछ कह जातीं. मिली-जुली हिंदी और बांगला में उनका संबोधन काफी धाराप्रवाह होता..एक दिलचस्प घटना का जिक्र करना चाहूँगा..अभी जनवरी 2013 में जब वे दार्जिलिंग दौरे पर आयीं थी तो चौरास्ता के मंच पर उनका भाषण हो रहा था. मैं मंच के ठीक सामने एसबीआई एटीएम के पास खड़ा था.. जबकि मेरे फोटो जर्नलिस्ट मंच के पास खड़े थे..काफी भीड़ थी और तिल रखने की भी जगह नहीं थी. मंच पर तृणमूल कांग्रेस समेत गोजमुमो के कई नेता भी मौजूद थे. इसके साथ ही विमल गुरुंग भी ठीक ममता के पास ही बैठे थे. ममता के भाषण के दौरान ही मोर्चा कार्यकर्ताओं ने वी वांट गोरखालैंड का नारा लगाना शुरू कर दिया..थोड़ी देर देखने-सुनने  के बाद ममता बनर्जी ने मंच से ही सभी को डपटते हुए कहा कि- तुम सब शांत हो जाओ... ये तुम्हारी पार्टी का कार्यक्रम नहीं है, जो इतना शोर मचा रहे हो... बंग भंग होबे ना..मतलब होबे ना ....ममता के इतना दहाड़ते ही पूरी भीड़ को सांप सूंघ गया.. इसके बाद ममता ने डॉ. सौमित्र मोहन को बुलाकर कुछ कहा और तुरंत ही मंच से उतर गयीं.. किसी को कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर मुख्यमंत्री को क्या हो गया ? भीड़ अस्तव्यस्त हो गयी और शोरगुल मचने लगा. काफी मुश्किल से विमल गुरुंग ने लोगों को शांत कराया. किसी तरह मैंने सौमित्र मोहन से पूछा तो उन्होंने बताया कि मैडम कालिम्पोंग के लिए निकल रही हैं... अब यहाँ नहीं रुकेंगी.. और दस मिनट में उनका कारकेड कालिम्पोंग के लिए निकल गया..उनके इस कदम पर गोजमुमो और तमाम विपक्षी पार्टियों ने पानी पी-पी कर उन्हें कोसना शुरू कर दिया...अखबारों और टीवी चैनलों में उक्त फुटेज और बाईट दिखाकर उनकी खूब आलोचना की गयी.. सबको एक मौका मिल गया था. जबकि ममता ने कालिम्पोंग पहुंचकर कई गुम्पाओं (बौद्ध मठ) के दर्शन किये और अगले दिन कोलकाता के लिए रवाना हो गयीं...इस दौरान उन्होंने एक शब्द का भी बयान नहीं दिया..
इसके पहले  नवम्बर के महीने में जब वे कालिम्पोंग दौरे पर आयीं थी तो मुझे उनका एक और रूप देखने को मिला था. वे कालिम्पोंग के डेलो गेस्ट हाउस में रुकी थीं.. मैं अपने कालिम्पोंग रिपोर्टर मुकेश शर्मा के साथ डेलो गेस्ट हाउस के बाहर ही घूम रहा था. हमारे साथ कई और भाई-बन्धु भी थे. मुख्यमंत्री दिन भर अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक में व्यस्त रही थीं. शाम होने के बाद ठंडक बढ़ते ही सबकी हालत ख़राब होने लगी थी. गेस्ट हाउस में ही कुछ पार्टी नेताओं द्वारा ममता के लिए लॉन में पारंपरिक नृत्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया था.. हम सब थोड़ी दूर पर खड़े होकर गपशप कर रहे थे. दरअसल तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक़ वे प्रेस को ब्रीफ करने वाली थीं.. अन्दर से जानकारी ये मिल रही थी कि काफी वर्षों से लंबित लेप्चा डेवलपमेंट काउन्सिल के गठन को लेकर कुछ अहम् घोषणा करने वाली हैं... हम सब उसी का इन्तजार कर रहे थे, जबकि लेप्चा व तिब्बती महिला कलाकारों का डांस शुरू हो चुका था.. दो-तीन मिनट के अन्दर ही ममता गले में शॉल लपेटे और हाथों में ऐपल का टेबलेट लेकर बाहर निकलीं. बिना किसी से बात किये हुए वे डांस कर रही लड़कियों की टेबलेट से तस्वीर उतारने में मशगूल हो गयीं..मैंने देखा कि काफी ठण्ड होने के बाद भी उस वक़्त उनके पैरों में सिर्फ हवाई चप्पल ही था.. ठीक अपनी आदत के मुताबिक़.... काफी देर तक हम सब इसी मंजर को देखते रहे... कभी वे डांस करती लड़कियों के घेरे के बीच पहुँच जातीं तो कभी गेस्ट हाउस की सीढ़ियों पर बैठ जातीं.. पर उनका टेबलेट हमेशा ऑन रहा...इस दौरान वे काफी आत्मीय और निश्चल मुस्कान के साथ सभी से पेश आयीं.  आखिरकार उन्होंने प्रेस को ब्रीफ नहीं किया... जानकारी मिली कि अब वो सुबह में बात करेंगी..अगले दिन उन्होंने सुबह 9 बजे प्रेस को ब्रीफ किया और लेप्चा संगठनों के नेताओं के बीच कहा कि अगले  कैबिनेट की बैठक में लेप्चा डेवलपमेंट काउन्सिल के गठन के लिए प्रस्ताव लाया जाएगा. हिल की राजनीति में ये एक महत्वपूर्ण खबर थी, जिसका सभी को इन्तजार था..थोड़ी देर पार्टी नेता व अन्य स्थानीय संगठनों के प्रतिनिधियों से मिलने के बाद उनका कारवां सिलीगुड़ी के लिए रवाना हो गया.. हम सब भी उनके पीछे-पीछे आ रहे थे...तीस्ता नदी का मनोहारी और भव्य नजारा दिखने लगा था.. तीस्ता अपने खतरनाक तेवर के साथ प्रवाहित हो रही थी... रानीपुल से थोड़ा आगे बढ़ने के बाद एक बार फिर उनका काफिला रुका.. सब लोग हैरत में कि अब क्या हो गया ? हम सब भी अपनी गाड़ी से उतर कर थोड़ा आगे बढ़े और जो नजारा दिखा, वो काफी हैरतंगेज था. एक बार फिर मैडम अग्निकन्या अपने टेबलेट के खिलौने के साथ तीस्ता को कैद करने में मशरूफ दिखीं... अलग-अलग कोणों से उन्होंने खूब तस्वीर उतारी... जबकि कुछ टीवी चैनल के कैमरामैन उनके इस प्रकृति प्रेम को अपने कैमरे में कैद करते दिखे.. वहीँ तमाम सुरक्षा ऑफिसर आसपास मुस्तैदी से डटे रहे... करीब 15 मिनट तक उन्होंने तीस्ता की मचलती अदाओं को अपने टेबलेट में समेटा और वहां से विदा हो गयीं......
            क्रमश ....