कुछ भी अनायास नहीं..... |
कभी-कभी..
मेरे सामने...
खिलती हुई धूप
चुप होती बारिश
परिंदों के पीछे
भागते बच्चे
हम तो एक साथ..
डूबने को उतरे
कई महासागर.. कितने हिमालय
पार नहीं पा जा सका
जब भी सामने हुए
चुप होती बारिश
परिंदों के पीछे
भागते बच्चे
और इतना सा कुछ
बाकी...
कुछ भी अनायास नहीं.....
तेरी मासूम हंसी सी
इबादत..
साथ जब भी हुए
तो..
डूबने को उतरे
कई महासागर.. कितने हिमालय
मगर..
जो नहीं हो सका
खिलती हुई धूप
चुप होती बारिश
परिंदों के पीछे
भागते बच्चे
यह मुकाम छूट गया
जबकि कुछ भी अनायास
नहीं था..
कभी-कभी..
मेरे सामने...
इतना ही हुआ
राहुल
Rahul Sir bahut Achchha Poem hai......
ReplyDeleteक्या कहूँ ?
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