Rahul...

31 December 2010

यही उमीदों का सगुन होगा

सपने खिलेंगे फिर से..
जाते-जाते
जो दे गया..
कुछ निशानी..
कुछ गुलाब..
और.. शब्द भी
नए साल की झोली में
यही उमीदों का..
सगुन होगा
सपने खिलेंगे फिर से..
हजारों गुलाब
नींद के आँचल में
किसी की कहानी
 में जी उठेंगे
लोग मिलेंगे- जुदा होंगे
मिटटी का शायद
यही मौसम होगा
हम सबों का
अपनी-अपनी राहों पर
फिर से नया जतन होगा
नए साल की झोली में
यही उमीदों का..
सगुन होगा
                             राहुल

1 comment:

  1. नींद के आँचल में खिलते गुलाब..

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