Rahul...

14 August 2011

हाथों पर कुछ रखकर

चले तो गए....
जितना कहते थे
हाथों पर कुछ रखकर
 मौन ..बिना कुछ
मांगे...
 सराबोर अपने...
संताप को चिपकाये..
 चले तो गए..
असहज..कातर
 साँसों का गला
घोंट ...चुपके से
उतना ही छोड़ ..
 चले तो गए..
एक-दो उदास पेड़
के आसपास ..
किस्सा रोप कर
 अपनी नज्म का
 चुपके से
...  तुम चले तो गए................

                                                                  राहुल

सांझ में सना हुआ

अपने मन से हटा देना
इतना संबल सजा कर रखना ....
आगे गहरी तपिश की...
रात हो शायद
जो कुछ भी कहा...
सब सांझ में सना हुआ

छोटी--छोटी थालियों में
भींगी हुई ...
अनमनी सी पड़ी रोटियां
बुझती हुई चूल्हे की
 डूबती हुई कहानियां
अपने मन से हटा देना

टूटे घरों में निढाल नींद
 रात के मजार पर...
 खुशबू में लोटते
लौटते पलों को
वापस मत आने देना

 परिंदों के काफिले में
टिमटिमाती नन्ही तितलियाँ
बसेरा तलाशती ...
भींगती....भागती
अनबूझी पहेलियाँ
यूं ही ....
अपने  मन से हटा देना

                                                        राहुल

13 August 2011

मखमली चाँद के पार

       चाँद के पार की दुनिया ... कितना मखमली ... कितना शीतल...हम कई जन्मों तक उसी में अपना सब कुछ तलाशते रहे ...तो क्या मिलेगा ? शुरू से अंत तक न जाने कितनी राते टूट कर तारों में मिल  जाती है और हम  ताकते रह जाते हैं ......मै अपने आप से कह नहीं पाती ...आपने एक ख्वाब दिया ....कितना  मदहोश कर  देता है आज मेरे हाथ में अपनी कोई कहानी नहीं......

       ...कच्ची उम्मीदों  को कभी बारिश की अदाबत महँगी पड़ती है.. तो कभी सन्नाटों में डूब जाने की चिंता ..आज आप अपने मन से कितने दूर हो गए हैं..चाँद से भी बहुत पार.. मगर मैंने आपको जाने कहा दिया...थोडा सा मैंने चुरा लिया..मेरे चारों तरफ पश्मीने की एक नाजुक और नर्म दीवार है..दम घुट जा रहा है और चाँद मखमली आगोश में कैद है..हर तरफ राख में लिपटी तुम्हारी पवित्र साँसे तड़प रही है.. इतना सा मंजर दे गए हो तुम ....न...न..आप.. कभी जी में आता है .....आज की रात के बाद उसी राख में मिल जाऊं ....आप इतना  तो एहसान करेंगे मुझ पर ...पर सहर की उम्मीद नहीं ...चाँद थोडा सा बाहर निकल रहा है अपनी आगोश से ....हम कितना बेवश हैं..मेरी भी मजबूरी रही होगी...कच्चे रेशम में लिपटी एक लड़की सदियों से अपना  लिबास बुन रही है ...पर हर  बार एक सिरा अधूरा रह जाता है...कोई देह को पा लेता है तो कोई आत्मा को चुपके से अपनी  पूरी कायनात में समेट लेता है...और चाँद के पार की दुनिया  में  गुम हो जाता है ...ठीक आपकी तरह.....

                                                                                                                        

12 August 2011

[Image]
अभी कुछ वक़्त पहले ही एक वाकया हुआ. हमने किसी को कुछ शब्द वादे में दिए. फिर बात ख़त्म हो गयी. हम सब मगन हो गए... पेड़ों पर नए मौसम के पत्ते आने लगे. सब नया सा हो गया. वादों में दिए गए शब्द मेरा पीछा करते रहे ... मै चुप रहने लगी ... कुछ भी किसी से कहा नहीं .. एक पल को लगा कि कही एक तार का सिरा टूट गया है. मै उन अधूरे वादे को लेकर पशोपेश में थी. जाहिर है शब्दों की तलाश बेपरवाह हो गयी.. मंजर जाता रहा .. पत्ते जब बिखर कर जमीन पर आये तो एक सदी गुजर चुका था.... वक़्त ने एक सलाह दी थी.... मुझे अपने आसपास से मिटा देना.. गर ऐसा नहीं कर सके तो राख तक नहीं बचेगी .. अपने सामने की तस्वीर से अपनी छाया समेट लेना.. सबके लिए यही मुनासिब होगा.. सनातन काल तक.....तुम कितना अपना सा कहते थे... ये सच भी था .... तुम जो भी थे... बेहद निर्विकार ... चोट खाते रहने की आदत में बेमिशाल थे ... शायद तुम्हारे दिए हुए शब्द मै सहेज नहीं पायी ... लगा ही नहीं ... कि मै तुम्हे कुछ प्रतिदान दे सकूंगी .... उसके बदले ... मन में एक वहम का सन्नाटा है... कैसा पल ... सब आसान नहीं .. तुम तो उन्ही शब्दों की खाक में यायावर होगे... सच ... एक यायावर से ज्यादा कुछ नहीं थे तुम ......... मैंने हमेशा तेरे अन्दर तुम्हें तलाशने की कोशिश की .... यह कितना मुश्किल था. कभी भी तुम......