Rahul...

14 December 2010

चुप रहना होगा..

इस जनम तो नहीं
कुछ कह सकूंगा
कुछ दे सकूंगा
और.. शायद
मिल सकूंगा
मै जानता हूँ
तेरी डोर...
तेरा द्वन्द
एक लकीर पर..
भोर की किरणें
आँखों में उतारने
को बेबस सा है
मुझे भी..
उस जनम तक
चुप रहना होगा..
मन को दफ़न करना होगा
जानता हूँ..
सदियाँ गुजर जाये
इबारत बदल जाये
मगर..
निर्मम से वक़्त में
एक..दो कतरा
हम दोनों का होगा
तुम तय कर लेना
मै.. तुम में ही मिलूंगा
                               राहुल

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