Rahul...

30 December 2010

तस्वीरों को बेरंग होते..

सदियों का मंजर.. आधी सी.. बेरंग सी
सदियों से
इस मंजर को
जीती तस्वीरें..
आधी सी
ग़ुम सी..
 नजर आ ही जाती है
अपने कई घरों में
रोज यह उदासी
तस्वीर में तब्दील होती रहती है ...
अपने सामने देखता रहता हूँ
तस्वीरों को बेरंग होते..
सदियों से कैद..
उनकी परछाई..
कितनी वेदना सहती रहती है..
अपने घर के मचान पर
कुछ पौधों की बेलें
आसमान को फिर से
ताक रही है..
कोई एक बेआबरू वक़्त
उसे जमीं पर समेट देता है
एक बार फिर से..
तस्वीरों को ख़त्म होते देखता हूँ
सच इतना हो सकता है कि.
सिर्फ शब्द  किस्सा नहीं बनते
सिर्फ शब्दों से सपने नहीं पनपते
जो यह मुमकिन होता....
तस्वीरें रंगों में भींगती
वेदना को पीकर
अपने सीने में चाँद उतारती
कुछ पौधों की बेलें
मेरे सारे घर पर
गुनगुनी धूप में नहाती
                                    राहुल

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