Rahul...

15 July 2015

इन का भी काम करना अपना भी काम करना.............

कागज़ की कश्ती में दरिया पार किया 
देखो हम को क्या क्या करतब आते हैं

कौन सा क़हर ये आँखों पे हुआ है नाज़िल
एक मुद्दत से कोई ख़्वाब न देखा हमने

निगार ए सुभुु से पूछेंगे शब गुज़रने दो 
के ज़ुल्मतों से उलझकर वो आयी या हम आये

कहीं ज़र्रा कहीं सेहरा कहीं क़तरा कहीं दरिया 
मुहब्बत और उस का सिलसिला यूं भी है और यूं भी

हर दम दुआएं देना हर लम्हा आहें भरना 
इन का भी काम करना अपना भी काम करना
                                                                
                                (दिग्गज पत्रकार राजीव मित्तल के फेसबुक वाल से)