तेरी तस्वीर
लाजिमी सी रही ..
हर पल यही हुआ
जब भी कुछ जीया..
अंतर्मन से जीया....
जब भी कभी
तुमसे कुछ...
कहा नहीं..
एक अर्जी रही..
एक रोमानी ख्वाब
बेमानी सा..चलता रहा
कही कुछ दहकता
तेरी उम्मीदों के
आगोश में
डूबता- निकलता
हर पल यही हुआ
जब भी कुछ जीया..
अंतर्मन से जीया....
शायद हो न सके
इस काबिल कि..
कभी कुछ कह सका
मैं खामोश रहा..
वक़्त सिमटता रहा..
मगर..
तेरी तस्वीर
लाजिमी सी रही ..
और ...
जब भी कुछ जीया..
अंतर्मन से जीया....
Rahul...
29 November 2010
28 November 2010
सजा
जीते रहने की सजा
कब तक.. कब तक
तुमसे कभी कहा था..
कि..
अब जो मिसाल है
वो एक ख्वाब है
कभी तड़पती..
मचलती हसरतें..
नहीं दे सका तुम्हें
एक मुट्ठी आसमान..
मिजाज के दो नज्म ...
जीते रहने की सजा
कब तक.. कब तक
तुमसे कभी कहा था..
कि..
तुम्हारा सवाल
मेरा जवाब
कहीं नहीं था
कब तक.. कब तक
तुमसे कभी कहा था..
कि..
अब जो मिसाल है
वो एक ख्वाब है
कभी तड़पती..
मचलती हसरतें..
नहीं दे सका तुम्हें
एक मुट्ठी आसमान..
मिजाज के दो नज्म ...
जीते रहने की सजा
कब तक.. कब तक
तुमसे कभी कहा था..
कि..
तुम्हारा सवाल
मेरा जवाब
कहीं नहीं था
26 November 2010
वक़्त टूट सा गया
कुछ वक़्त टूट सा गया ....
साँसे.. सैलाब
काँटों में लिपटी
गुलाबों की नर्म महक
जैसे हर पल..
दम बिखरता
स्वप्न..
.. टूट सा गया ....
परिंदों की लय.
हाथों में सिमटी
पूरी जन्नत..
टूट सा गया ....
मैं शायद
अब नहीं
कि..
स्वप्न..
खो सा गया है
साँसे.. सैलाब
और तुम्हारी
कुछ कतरनें
सिर्फ...
बिखरने को है ...
साँसे.. सैलाब
काँटों में लिपटी
गुलाबों की नर्म महक
जैसे हर पल..
दम बिखरता
स्वप्न..
.. टूट सा गया ....
परिंदों की लय.
हाथों में सिमटी
पूरी जन्नत..
टूट सा गया ....
मैं शायद
अब नहीं
कि..
स्वप्न..
खो सा गया है
साँसे.. सैलाब
और तुम्हारी
कुछ कतरनें
सिर्फ...
बिखरने को है ...
24 November 2010
22 November 2010
माँ तुम...आज भी
माँ तुम सब जानती हो
कभी जिद.. गुस्सा
और तुम्हारा मनुहार
कुछ ख्याल सा
नींद में जागते
मेरे कदम ..
कहाँ उठे.. कहाँ गिरे
माँ तुम सब जानती हो
जब कभी
थका सा टूटा
तुमने कुछ सहेज दिया
बिना कुछ..
एक शब्द
माँ तुम सब जानती हो
जब नहीं था
मेरा आँगन..
मेरी छाया
एक लम्हा भी नहीं
जी सका ..
तब तुमने ..
कहा था.. कि
भींगी सी जमीन
शाम सी नमी..
बस इतना ही
हो सकता तेरा..
माँ तुम...
आज भी सब जानती हो
राहुल
कभी जिद.. गुस्सा
और तुम्हारा मनुहार
कुछ ख्याल सा
नींद में जागते
मेरे कदम ..
कहाँ उठे.. कहाँ गिरे
माँ तुम सब जानती हो
जब कभी
थका सा टूटा
तुमने कुछ सहेज दिया
बिना कुछ..
एक शब्द
माँ तुम सब जानती हो
जब नहीं था
मेरा आँगन..
मेरी छाया
एक लम्हा भी नहीं
जी सका ..
तब तुमने ..
कहा था.. कि
भींगी सी जमीन
शाम सी नमी..
बस इतना ही
हो सकता तेरा..
माँ तुम...
आज भी सब जानती हो
राहुल
20 November 2010
नामुमकिन सा है
निगाहों में शिकन
को बहने दो...
लग के साहिल से
चुभता है धुआं
उसे..
सिर्फ बहने दो
कागजों की किश्तियाँ
कितनी दूर
कब तक
उसे..
सिर्फ बहने दो
दो पल के लिए...
जानता हूँ
नामुमकिन सा है
लौटना..
कागजों की किश्तियाँ
कितनी दूर
कब तक
को बहने दो...
लग के साहिल से
चुभता है धुआं
उसे..
सिर्फ बहने दो
कागजों की किश्तियाँ
कितनी दूर
कब तक
उसे..
सिर्फ बहने दो
दो पल के लिए...
जानता हूँ
नामुमकिन सा है
लौटना..
कागजों की किश्तियाँ
कितनी दूर
कब तक
पानी सा तेरा नाम
नहीं सोचा था
दूर तक..
तेरा रंजोगम
खिलते गुलाब
पानी सा तेरा नाम
ख्वाब सा हो जायेगा
नहीं सोचा था
माटी के लोग
उम्मीद बेहिसाब
और..
पानी सा तेरा नाम
ख्वाब सा हो जायेगा
नहीं सोचा था
चाँद की परियां
दादी का किस्सा
और..
पानी सा तेरा नाम
ख्वाब सा हो जायेगा
दूर तक..
तेरा रंजोगम
खिलते गुलाब
पानी सा तेरा नाम
ख्वाब सा हो जायेगा
नहीं सोचा था
माटी के लोग
उम्मीद बेहिसाब
और..
पानी सा तेरा नाम
ख्वाब सा हो जायेगा
नहीं सोचा था
चाँद की परियां
दादी का किस्सा
और..
पानी सा तेरा नाम
ख्वाब सा हो जायेगा
18 November 2010
कभी तो ऐसा हो ....
कभी तो ऐसा हो ....
कि..
तुमसे कह सकूं
माँ के बारे में
धूप में बरसता
टूटता उनका मन
तुम सुन सको
उन्हें ..
कभी तो ऐसा हो ....
कि..
कागज़ की दुनिया में
कदम उठे तेरे ...
जहाँ हजारों
गुनगुनाते मौसम
जर्जर पत्तों की
बेलौस सी
बहकती रंगत
कभी तो ऐसा हो ....
कि..
तुमसे कह सकूं
तेरे हाथ की
नरमी..
सदियों के बाद भी
मेरे आसपास
कैद है..
कभी तो ऐसा हो ....
Rahul
कि..
तुमसे कह सकूं
माँ के बारे में
धूप में बरसता
टूटता उनका मन
तुम सुन सको
उन्हें ..
कभी तो ऐसा हो ....
कि..
कागज़ की दुनिया में
कदम उठे तेरे ...
जहाँ हजारों
गुनगुनाते मौसम
जर्जर पत्तों की
बेलौस सी
बहकती रंगत
कभी तो ऐसा हो ....
कि..
तुमसे कह सकूं
तेरे हाथ की
नरमी..
सदियों के बाद भी
मेरे आसपास
कैद है..
कभी तो ऐसा हो ....
Rahul
17 November 2010
एक शोर उठा पानी
रोज शाम के जागते
अँधेरे में..
तुम्हारी सांस
की खनक पर
एक शोर उठा पानी
सुबह के सोते
उनींदे सपने
खाक में मिटने की
लगन तक
एक शोर उठा पानी
Rrahul
अँधेरे में..
तुम्हारी सांस
की खनक पर
एक शोर उठा पानी
सुबह के सोते
उनींदे सपने
खाक में मिटने की
लगन तक
एक शोर उठा पानी
Rrahul
...तब तक
रेत की दुनिया
रेत के सपने
हाथों से फिसलता ..
पिघलती रेत के नगमे
तब तक रहूँगा..
तेरी आँखों में
जब तक
बच्चे बनाते रहेंगे
रेत के घर
पानी के मकान
और...
नाजुक खिलखिलाहट
रेत के सपने
हाथों से फिसलता ..
पिघलती रेत के नगमे
तब तक रहूँगा..
तेरी आँखों में
जब तक
बच्चे बनाते रहेंगे
रेत के घर
पानी के मकान
और...
नाजुक खिलखिलाहट
15 November 2010
अब यही मुनासिब है..
तेरी सुबह का
एक मोती
मेरी हथेलियों पे
टिका रहा
उस विरानी शाम तक
जैसे वीरान
एक जंगल...
कुछ मंजर ..
और . ..
तेरी सुबह का
एक मोती
जब लरजती धूप
बरसी... तो
विरानी शाम
कुछ मंजर
और . ..
तेरी सुबह का
एक मोती
गुनगुनाने की जिद में
मुद्दतों तक
तेरी मोती को समेटता रहा
अब यही मुनासिब है..
एक जंगल...
कुछ मंजर ..
और कुछ ..
विरानी शाम
Rahul
एक मोती
मेरी हथेलियों पे
टिका रहा
उस विरानी शाम तक
जैसे वीरान
एक जंगल...
कुछ मंजर ..
और . ..
तेरी सुबह का
एक मोती
जब लरजती धूप
बरसी... तो
विरानी शाम
कुछ मंजर
और . ..
तेरी सुबह का
एक मोती
गुनगुनाने की जिद में
मुद्दतों तक
तेरी मोती को समेटता रहा
अब यही मुनासिब है..
एक जंगल...
कुछ मंजर ..
और कुछ ..
विरानी शाम
Rahul
14 November 2010
राख में लिपटी....
तेरे मन की भूल को
देखा.. परखा..
राख में लिपटी....
कायनात
तुम्हारी सुबह...
तुम्हारी शाम..
मान लो जैसे
एक बच्चा
माँ के आँचल
में ...
ग़ुम सा बेसुध
अलसाया सा
लेटा हो..
शायद
राख में लिपटी....
कायनात
मद्धिम आंच पर
अनवरत..
अनादिकाल तक
ग़ुम सा बेसुध
अलसाया सा
लेटा हो..
तुम्हारी सुबह...
वो बच्चा..
और..
राख में लिपटी....
कायनात
यथावत रहे..
राहुल
देखा.. परखा..
राख में लिपटी....
कायनात
तुम्हारी सुबह...
तुम्हारी शाम..
मान लो जैसे
एक बच्चा
माँ के आँचल
में ...
ग़ुम सा बेसुध
अलसाया सा
लेटा हो..
शायद
राख में लिपटी....
कायनात
मद्धिम आंच पर
अनवरत..
अनादिकाल तक
ग़ुम सा बेसुध
अलसाया सा
लेटा हो..
तुम्हारी सुबह...
वो बच्चा..
और..
राख में लिपटी....
कायनात
यथावत रहे..
राहुल
तुम्हारे लिए ....
इश्तिहार सा चिपका
बेजान सा वो किस्सा ..
तेरे मन की धूप में
सराबोर हो गया
तेरे पैरों की रंगत
घुल गयी...
सदमा सा वो वक़्त
बेरहम सी हंसी
तेरे मन की धूप में
सराबोर हो गया
तुम्हारे लिए ....
मेरे अंजुमन में
नहीं था तो...
एक कोरा सुख
मासूम पानी के बुलबुले
और ...
बेजान सा वो किस्सा ..
जो कुछ था
जैसा भी था
आईने सा बिखरा था
तुम्हारे लिए..
कितना शब्द ..
कितनी यात्रा
सदमा सा वो वक़्त
बेरहम सी हंसी
राहुल
बेजान सा वो किस्सा ..
तेरे मन की धूप में
सराबोर हो गया
तेरे पैरों की रंगत
घुल गयी...
सदमा सा वो वक़्त
बेरहम सी हंसी
तेरे मन की धूप में
सराबोर हो गया
तुम्हारे लिए ....
मेरे अंजुमन में
नहीं था तो...
एक कोरा सुख
मासूम पानी के बुलबुले
और ...
बेजान सा वो किस्सा ..
जो कुछ था
जैसा भी था
आईने सा बिखरा था
तुम्हारे लिए..
कितना शब्द ..
कितनी यात्रा
सदमा सा वो वक़्त
बेरहम सी हंसी
राहुल
13 November 2010
..भींगी रात
..भींगी रात
..निशब्द मन
सिर्फ मौन.. सिर्फ मौन ...
सहेज लो.. कुछ बात
निशब्द मन
हर पल.. ख़ास पल
सहेज लो.. कुछ बात
मुमकिन सी रात
बस भींगी रात
ओस में नहाती बात ...
एक कदम ... दो कदम
तेरे संग ..
टूटी रात.. बिखरी रात
सहेज लो.. कुछ बात
राहुल
..निशब्द मन
सिर्फ मौन.. सिर्फ मौन ...
सहेज लो.. कुछ बात
निशब्द मन
हर पल.. ख़ास पल
सहेज लो.. कुछ बात
मुमकिन सी रात
बस भींगी रात
ओस में नहाती बात ...
एक कदम ... दो कदम
तेरे संग ..
टूटी रात.. बिखरी रात
सहेज लो.. कुछ बात
राहुल
12 November 2010
एहसान इतना सा कर दे ....
कुछ कहना था तुमसे
सहेज कर ...
तेरे पन्नों को
छुपा दिया था...
अब नहीं
कभी नहीं
तेरी दी हुई सौगात
वापस करना है मुझे..
निर्वात..
चुप्पी..
और ...
तेरे लबों की ख़ामोशी...
अब नहीं
कभी नहीं
एहसान इतना सा कर दे ....
मुझे फिर तनहा सा कर दे
कुछ कहना था तुमसे
Rahul
सहेज कर ...
तेरे पन्नों को
छुपा दिया था...
अब नहीं
कभी नहीं
तेरी दी हुई सौगात
वापस करना है मुझे..
निर्वात..
चुप्पी..
और ...
तेरे लबों की ख़ामोशी...
अब नहीं
कभी नहीं
एहसान इतना सा कर दे ....
मुझे फिर तनहा सा कर दे
कुछ कहना था तुमसे
Rahul
11 November 2010
10 November 2010
09 November 2010
सूर्य की किरण बिखरेगी
आज से छठ शुरू
उगता सूरज देता है
एक नई उर्जा ..
असीम आनंद
सोच... संस्कार.. स्वभाव..
और जीवन..
सबको
उगता सूरज देता है
एक नई उर्जा ..
असीम आनंद
भोर की किरण..
एक नए समय
नए जीवन..
नयी उम्मीद
उगता सूरज देता है
एक नई उर्जा ..
असीम आनंद
राहुल
उगता सूरज देता है
एक नई उर्जा ..
असीम आनंद
सोच... संस्कार.. स्वभाव..
और जीवन..
सबको
उगता सूरज देता है
एक नई उर्जा ..
असीम आनंद
भोर की किरण..
एक नए समय
नए जीवन..
नयी उम्मीद
उगता सूरज देता है
एक नई उर्जा ..
असीम आनंद
राहुल
तेरे आने तक......
कोई एक सवाल
जो जेहन में...
युगों तक मन के रंगों में
घुलमिल जाए...
शायद वक़्त थम सा जाये
तुमने जो एक लकीर
मेरे दामन में
कभी थमा दिया था...
तेरे आने तक
टूट कर बिखर जाए...
मैं सपनों में नहीं..
तेरे पन्नों में नहीं
शायद समय की रेत पर
तेरे आने तक..
खुद का अक्स तलाशता
मिल जाऊँगा..
तेरी एक नज्म...
मेरे आँगन में
उम्मीद की..
साँसों को जी ले
तेरे आने तक
पतझर जी उठेगा..
राहुल
जो जेहन में...
युगों तक मन के रंगों में
घुलमिल जाए...
शायद वक़्त थम सा जाये
तुमने जो एक लकीर
मेरे दामन में
कभी थमा दिया था...
तेरे आने तक
टूट कर बिखर जाए...
मैं सपनों में नहीं..
तेरे पन्नों में नहीं
शायद समय की रेत पर
तेरे आने तक..
खुद का अक्स तलाशता
मिल जाऊँगा..
तेरी एक नज्म...
मेरे आँगन में
उम्मीद की..
साँसों को जी ले
तेरे आने तक
पतझर जी उठेगा..
राहुल
08 November 2010
अपने-अपने मौसम...
आसान नहीं है...
मौसम का मान लेना
तुम कह तो दो..
शायद कुछ बूँद
बिखर जाए...
आसान नहीं है...
मौसम का मान लेना
तुम पलट कर ...
अपनी आँखों में
कुछ नमी तो सहेज लो
शायद कुछ
मासूम सपने फिर से.
गूँज उठे ....
मैं अपने मौसम के साथ
खुद की तलाश में
कई सदियों तक खामोश
रह सकता हूँ..
यह वक़्त शायद मेरा नहीं...
राहुल.........
मौसम का मान लेना
तुम कह तो दो..
शायद कुछ बूँद
बिखर जाए...
आसान नहीं है...
मौसम का मान लेना
तुम पलट कर ...
अपनी आँखों में
कुछ नमी तो सहेज लो
शायद कुछ
मासूम सपने फिर से.
गूँज उठे ....
मैं अपने मौसम के साथ
खुद की तलाश में
कई सदियों तक खामोश
रह सकता हूँ..
यह वक़्त शायद मेरा नहीं...
राहुल.........
07 November 2010
मेरे पास है ....
उम्मीद की हद...
दामन में कुछ ...
बिखेर गया
तेरा नाम ... तेरा चेहरा
... और टूटती साँसे ..
जिंदगी के उलझे पल
यही कुछ मेरे पास है ....
rahul
दामन में कुछ ...
बिखेर गया
तेरा नाम ... तेरा चेहरा
... और टूटती साँसे ..
जिंदगी के उलझे पल
यही कुछ मेरे पास है ....
rahul
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