Rahul...

14 November 2010

तुम्हारे लिए ....

इश्तिहार सा  चिपका
बेजान सा वो किस्सा ..
तेरे मन की धूप में
सराबोर हो गया
तेरे पैरों की रंगत
घुल गयी...
सदमा सा वो वक़्त
बेरहम सी हंसी
तेरे मन की धूप में
सराबोर हो गया
तुम्हारे लिए ....
मेरे  अंजुमन में
नहीं था तो...
एक कोरा सुख
मासूम पानी के बुलबुले
और ...
बेजान सा वो किस्सा ..
जो कुछ था
जैसा भी था
आईने सा बिखरा था
तुम्हारे लिए..
कितना शब्द ..
कितनी यात्रा
सदमा सा वो वक़्त
बेरहम सी हंसी
                       राहुल

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