Rahul...

30 October 2011

मै..नहीं...हम...नहीं...

 
तुम मेरी निगाहों को गैर कर दो.
इतना ही तो होना था...
मेरा लम्हा खुद कहीं पैवस्त रहा होगा .
सच में.. ये अकस्मात् नहीं था
तुम मेरे लिए खाली हाथ ही तो आये थे......
इतना कुछ भी आसान गर होता....
जबकि किसी का वजूद
तेरी लकीरों में चस्पां था.
सदियों से .....
तुमने दो लकीरें खींच रखी है..
एक.. जिसमें मैं उसके जद में रहता हूँ.
दूसरा ...तुम उस लकीर के आसपास
आडम्बर का घेरा रचती हो...
मै..नहीं...हम...नहीं..
हजारों सागर का आर्तनाद
मेरी साँसों में टूटता रहता है......
सच में ...ये सब अकस्मात् नहीं होता ..

                                                                                     राहुल




29 October 2011

रात नहीं होती .....

रात जो ठहर जाती है.
रात जो गुम हो जाती है.
रात जो परिंदों को ....
अपनी कहानियों का हिस्सा बनाती है..
शायद उस रात का अपना आशियाँ नहीं होता...
रात का अपना संबल नहीं होता.
बच्चे दूध की भीनी महक
रात में गुनगुनाते हैं...
कुछ सपने लड़कियों के ..
रात में टिमटिमाते हैं..
रात जो ठहर जाती है
रात जो सभी तिनकों को
अपने घोंसला में सजाती है ..
शायद उस रात का अपना मकान नहीं होता..
प्यार की चिट्ठियाँ रात में,
तन्हाई....रुसवाई  रात में,
अलबेली कायनात रात में,
पत्तों पर गिरती ओस....
 रात में बुनी जाती है ..
शायद उस रात का अपना कोई आइना नहीं होता
रात के सफ़र में यकीनन अपनी कोई ....
रात नहीं होती ................


                                                                                     राहुल

27 October 2011

छोटी सी इबादत -11

तुम ...कहाँ सो गए...
...किसी को भी शायद भ्रम सा हो जाए.. कहीं तो कुछ नदियाँ घुलती रहीं होंगी..तेरी कतरन ....बिलीन होती पातालगंगा में मिल जायेगी...मुझे भी एक भ्रम ने जिन्दा रखा है.मै हमेशा तुमसे कुछ चुराती रही हूँ...तुम जानते भी थे इस बात को..  पर तुम मुस्कुराते रहते थे. खुद की खींची लकीरों पर जो इंसान हांफता.. थका-मांदा अभी लौटा है ...वो तो सिर्फ चुप रह सकता है......और ऐसा ही हुआ भी.......
 मै इतनी सारी नदियों के शाप से कैसे मुक्त हो सकूंगी..तुम तो सभी जगह, सभी धाराओं में मचलते हुए बिलीन होते रहे..कितनी कतरन समेटेंगे आप ? आज वक़्त किसी मोड़ पर नहीं खड़ा है, बल्कि खुद के कटघरे में संताप की दुहाई दे रहा है.... मुझे छोड़ दो..मुझे गुजर जाने दो..मुझे उसी धुंध में गुम जाने दो.....मुझे होश नहीं है अब......तहसीम मुनव्वर की सिर्फ एक लाइन ...जाने तुम कैसे सो जाते हो ? ....जाने तुम कैसे सो जाते हो ?........

                                                                        राहुल