Rahul...

03 January 2011

सदी सा गुजरता है..

इतना एहसास भींगता है.....
इतना एहसास भींगता है.....

तेरे हाथों की..
लकीरों में एक नाम सा
दिखता हूँ..
तुम बार-बार.
अपनी किस्मत को
हाथों से मिलाती हो..
जहाँ.. कुछ नहीं दिखता
मेरा नाम धुंधला सा है
मै जानता हूँ कि..
मुझे तलाशने का जतन
तेरे सीने पर सदी
सा गुजरता है..
मै तो सिर्फ
एक लकीर सा हूँ..
मुझे इतना पता है..
 तेरी निगाहों में
जो सदमा पैबस्त है..
उसमें हमदोनों हर पल
डूबते हैं..
इतना एहसास भींगता है
मेरा नाम..
 और
तेरे हाथों की लकीर
बहुत देर से मिले
शायद वही वक़्त होता है..
जब
तेरे हाथों की..
लकीरों में एक नाम सा
दिखता हूँ..
मेरी  धड्कनों में सिमटी हुई
तेरे सीने की सदी
मुझ पर टूटता है
इतना एहसास भींगता है

                                          राहुल

No comments:

Post a Comment