Rahul...

28 December 2010

कुछ अपना बताने को

रंग बाते करें.. और बात से खुशबू आये .. 
जब  कभी
रंग सैलाब सा मचलता है
मुझे मजबूर करता है
सुनने-सुनाने को
कुछ अपना बताने को
तो फीकी सी सफेद
मुस्कान समेटे मै
सवाल जुटाता हूँ
कई बार.. कई कैनवास
मैंने कई बार..
रंगों से बातें की..
पूछा.. उनके घर का पता
कैसे मिलूंगा तुमसे..
तेरे घर पर
रास्ते को जानता नहीं
यह तो पता है..कि
कभी बिखरा था
बीते हुए मौसम में
तेरे हाथ पर
कुछ सौगात रख दी थी
उसकी गूँज..
अब भी तड़पती हुई
कही तेरे घर के आसपास
तेरे क़दमों के करीब
हर दम दफ़न होती है..
मेरे रंगों को तो
इतना पता है
जब कभी
रंग सैलाब सा मचलता है
इतना कुछ दे जाता है
मै कहूँगा फिर से
तेरे-मेरे रंग
उसी रास्ते पर
एक- दूसरे का पता
मांगते- भटकते
बेनाम सफ़र में
विलीन होते रहते हैं...
                                      राहुल

2 comments:

  1. Rahul Sir Apki yah kavita Risto ko gahrayi se samjhne aur sochane ko majboor karti hai.... Very Nice sir...

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  2. न ..न.. रंग एक हो जाते हैं..

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