Rahul...

10 December 2010

चुप सी लगी रहती है...

नदी जो सवाल करती है
चुपचाप.. अनवरत..
बहती जाती
बेख़ौफ़ इठलाती
मचलती
नदी जो सवाल करती है...
चुप सी लगी रहती है
अरमानों को दबा के
भूलते-बिसरते
बेआसरा होकर
ठिकाना तलाशते
नदी जो सवाल करती है...
समय जो पीर सा है..
सीने में चुभता ..
तेरा गुजरा  मरासिम
रात सी ढलती है
खिजां सी बिखरती है..
तुम इतना समझना सिर्फ.
कि..
मै बहता रहूँगा..
बिना किसी किनारे
चुपचाप.. अनवरत..
                                    राहुल

1 comment:

  1. बहुत खूब!अच्छी अभिव्यक्ति है.
    ........................
    क्रिएटिव मंच आप को हमारे नए आयोजन
    'सी.एम.ऑडियो क्विज़' में भाग लेने के लिए
    आमंत्रित करता है.
    यह आयोजन कल रविवार, 12 दिसंबर, प्रातः 10 बजे से शुरू हो रहा है .
    आप का सहयोग हमारा उत्साह वर्धन करेगा.
    आभार

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