Rahul...

05 December 2010

सौ रिश्तों में भी...

तपती दोपहर सी है
लड़कियों की जिंदगी
जमीं पर उतरते.
डरी... सहमी सी
आसरा तलाशती
अपनों से भी पनाह मांगती है..
लड़कियों की जिंदगी
रिश्तों के सहरा में
डोर थामती.. भटकती
काँटों में लिपटी सी
मोक्ष मांगती
डरी... सहमी सी है
लड़कियों की जिंदगी
अरमानों का खून होते
तार-तार सी
बिखरती... संभालती
जर्जर सपनों को ढंकती
तपती दोपहर सी है
लड़कियों की जिंदगी
हर जमाने.. हर सदी में
जीवन का अवसान करती
सौ रिश्तों में भी 
अधूरी सी..ग़ुम सी रहती
चमकते कांच घर जैसा
बन कर रह जाती है..
लड़कियों की जिंदगी

2 comments:

  1. adhure hone ka ehsaas kabhi kudh ladhkiyon ko nahi hota balki uske aas-paas ke rishte use adhure hone ka ehsaas karate hain --- rahul ji aapki ish kavita me ladhki adhuri nahi hai balki ladhi ke hone se wo sau rishte pure hote hain...lekin yyah aapne sahi kaha ki dusro ko pura karne wali ladhki ko dharti par aane ke liya bahut sanghrash karna padhta hai

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  2. लड़कियों की जिंदगी ग़ुम सी रहती है...या फिर होती ही नहीं है..

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