Rahul...

28 November 2010

सजा

जीते रहने की सजा
कब तक.. कब तक
तुमसे कभी कहा था..
कि..
अब जो मिसाल है
वो एक ख्वाब है
कभी तड़पती..
मचलती हसरतें..
नहीं दे सका तुम्हें
एक मुट्ठी आसमान..
 मिजाज के दो नज्म ...
जीते रहने की सजा
कब तक.. कब तक
तुमसे कभी कहा था..
कि..
तुम्हारा सवाल 
मेरा जवाब
कहीं नहीं था

1 comment:

  1. जीते रहने की सजा .... पुनः सुन्दर रचना .आपको शुभकामना

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