ज्यादा वक़्त नहीं गुजरा. कभी- कभी इतना सा दिखता है. हम अपने आसपास न जाने कितने मौसम को बदलते देखते रहते हैं. हजारों नाम.. हजारों चेहरें आपके जेहन में घूमते रहते हैं.
इतना समझता हूँ और महसूस करता हूँ कि आपके न चाहते और न जानते कुछ नाम.. कुछ चेहरे आपको बार-बार जगाते रहते हैं. काफी मुश्किल होता है ऐसे सपने और उसमें जागती हुई तस्वीरों से खुद को जुदा करना.. बहुत दर्द.. बेहद तड़प..
स्कूल के साथी अभी कहाँ हैं.. भूलते-भागते पलों में जो नाम मुझसे चस्पां रहा. उसकी यादें ही शेष है. स्कूल की आधी दुनिया गाँव में सहेज कर रखी गयी.. बाकी की जिन्दगी शहरों में दफ़न होती गयी.. और हो रही है. घर के लोग मेरे बारे में जो बचपन में कहते थे.. उसी बात को आज भी दोहराते रहते है.. न एक रत्ती ज्यादा और न एक रत्ती कम.. मै मानता हूँ कि यह मेरी सबसे बड़ी जीत है. यह अलग बात है कि अब तक के सफ़र में सब कुछ खोने के अलावा बाकी कोई चीज़ नहीं हासिल कर सका. मुझे बार-बार एक हिंदी फिल्म की एक सटीक लाइन याद आती है. वो इंसान ही क्या.. जो बदल जाए.. अगर इस लाइन को अपनी जिन्दगी में न उतारते तो संभव था बहुत कुछ दुनियावी चीज़ें पा लेता. मगर ऐसा हो ना सका.
शेष.......
मुनचुन के मन से..
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