घर के कोने में
मिलते थे..
तुम मेरे नहीं थे..
मै देखती रहती थी
तुम्हें किताबों में.
सूनी-सूनी सी
घर की छतों पर
नींद में तुम..
यदा-कदा तुम दिख
जाते..
आते-जाते
दूर भागते रहते थे..
थमती साँसे..
हवा को समेटने का जतन
बेवस सी होती..
मेरी नींद
तुम हवा में सिमटे..
तो सूखे पत्तों का
मंजर
पानी पर तेरी-मेरी
किस्मत
किनारे-किनारे
दूर जा चुकी थी..
तुम आ नहीं सके
पर.. मेरे सूखे पत्तों में
तेरी किताबें
तेरी ख़ामोशी
शायद..
मिल जाए..
राहुल
Hi Rahul Sir,
ReplyDeleteHow r u? Sorry bahut dino ke baad maine net open keiya. Nice to see your good thoughts
Bhai sahab aapki kavitaye to kamaal hai. aapke is awtar se pehli bar rubaru hua, dekhkar kafi achha laga. waise agar aapne mere post par comment na kiya hota to aapke is awatar ko nahi dekh pata. kafi achhi kavita hai... mai aapko call karta hu...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें
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