सलज नंगे पांव ... |
चुप से भंवर में
कहोगे..
और चुप से हो जाओगे
मै कहूँगी..
माँ कैसी है
तुम कुछ कह..
खामोश हो जाओगे
मैं घर की दर-ओ- दीवार
का हाल मांगूंगी
जानती हूँ
जवाब नहीं होगा
मैं फिर कुछ..
कहूँगी
तपती दोपहर में
सलज नंगे पांव
तेरा भटकना
याद है तुम्हें
शायद हाँ..
मै फिर से तुम्हें
कहूँगी
और बताइए..
इतने से सवाल में..
तुम रोज मिलते हो
रोज
देखो..
मेरी तस्वीर में
हाथों से आंसू मत समेटना
जी लेना..
उस धूल को..
जहाँ सब बिखरा है
तेरे नाम से..
माँ के बारे में
सच बताना
मैं जानती हूँ
उनके आँचल के पास
हमेशा लिपटी रही
इतने से सवाल में..
तुम रोज मिलते हो
पर तुम रोज..
चुप हो जाते हो
अनंत काल तक
मैं घर की दर-ओ- दीवार
का हाल मांगूंगी
राहुल
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