Rahul...

05 January 2011

मेरे घर के दरवाजे..

हवाओं ने.. सजाया होगा

मेरे जैसे होते गए
मेरे घर के दरवाजे.. खिड़कियाँ
आहट किसी के ..
चुपके से आने की
बाट जोहते रहे
मै किताबों में सजा
बेमतलब सा पन्ना
कभी हवाओं ने..
मुझे समेटा.. समझाया होगा
मेरे घर के दरवाजे..
निहारते रहे इस तरह
जैसे..
कोई बेनाम सा आया होगा
उस तरह से
लौटा हुआ थका मंजर
सहमे-सहमे से मेरे कमरें से
हवाओं ने..
मुझे समेटा.. समझाया होगा
                                                        राहुल

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