Rahul...

05 January 2011

बेदर्द हवा के पन्नों पर


इक आग सी मैं पीती हूँ..
 

जब कभी तुम
रोते हो..
मै शोर सी हो जाती  हूँ....
...बेमौत ही मर जाती हूँ
तुम कह भी  नहीं पाते
दूर भी नहीं जाते
मै शोर सी हो जाती  हूँ....
..बेमौत ही मर जाती हूँ
बस यातना को जीती हूँ
इक आग सी मैं पीती हूँ
जब कभी तुम
रोते हो..
मैं देखती रह जाती हूँ ..
बेदर्द हवा के पन्नों पर
तुमको समेटती रहती हूँ
यह बेकार सा जतन होता है
जीने का भ्रम होता है..
जब कभी तुम
रोते हो..
मै शोर सी हो जाती  हूँ....
...बेमौत ही मर जाती हूँ
                                                  राहुल

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