काल के अन्तःघट में |
खुद के साये का पहरा है
वो कौन है.. वो कौन है...
निर्दोष रेत के गर्भ में.
बेमन सांसों की परवाज है
उदास वन की रश्मियों में
नब्ज थमती हुई आवाज है
वो कौन है.. वो कौन है...
कुछ दर्द नाजुक पानी है
नीरव उम्मीद रोमानी है
काल के अन्तःघट में
जिनकी बेलौस कहानी है
वो कौन है.. वो कौन है...
ना तेरा पल..ना मेरा पल
सांझ पहर के क़दमों में
गुमसुम सा जो ठहरा है
खुद के साये का पहरा है
वो कौन है.. वो कौन है...
राहुल
गुमसुम सा जो ठहरा है
ReplyDeleteखुद के साये का पहरा है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति शुभकामनायें
वाह....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना...
बहुत खूब ।
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