कितना बदल गए. आँखों से दूर होकर भी तुम सबकुछ थे. कल भी रहोगे. चुप रहने की तुम्हारी जिद कभी खत्म नहीं होगी .तेरे नाम का मतलब कभी मुझे बताया गया था. छोटी सी इबादत में सिर्फ तुम ही थे. आज भी हो...
याद है तुम्हें.. शायद याद होगा.. एक बार भींगे मौसम में तुम बारिश में सराबोर होकर आये थे. मै चुपचाप तुम्हें देख रही थी. तुमने भी मुझे चुराकर देख लिया था. वो भींगा दिन हमेशा मुझसे चिपका रहा. तुम उस दिन कुछ कहना चाह रहे थे. वैसे तुम हमेशा खामोश रहते थे. मगर वो दिन मेरा था. मेरी कुछ मन्नत पूरी होने वाली थी. तुम बारिश में निमग्न थे. मै तुममे.. कितना अजीब था वो पल. उस घर में तुम हवा की तरह दिखते थे. घर से जब निकले तो चीख सा सन्नाटा.. और जब घर में लौट कर आते तो दरवाजों के साथ कई चीजें खुलती.. मन... आत्मा और न जाने क्या-क्या ? तुम भागते.. और एकदम से दूर हो जाते.. तेरे घर में होकर मै सबकी थी.. सिर्फ तुम नहीं... खैर.. बात उस मौसम के गीले पन्नों की हो रही थी. मै हमेशा.. हर पल... तुमको खोती रहती..
तुम कही और रहते.. मै हरपल तेरा अक्स तलाशती रहती. ठीक उस तरह.. जैसे साया को समेटने की जद्दोजेहद करती उम्मीदें.. जैसे साँसों में ग़ुम होती कहानियां... आगे और भी
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