Rahul...

24 December 2011

जाते-जाते

 
... हम शायद कभी  उनके बारे में नहीं सोचते.. जो सच में आपकी ओर उम्मीद भरी निगाहों से टकटकी लगाये रहते हैं... खुद के आसमान को हमने इतना फलक नहीं दिया, सदा अपने खोल में दुबके रहे.. इस डर से कि कुछ अनर्थ हो जायेगा.. यहीं चुक हो जाती है... खैर ऐसा तो सरेआम हो ही जाता है..
कुछ करीब रहनेवाले लोगों को एक चीज काफी नागवार लगा. इरादा ऐसा नहीं था. एकदम नहीं..... अचानक किसी को याद करते हुए इन  सब बातों से काफी चोट पहुंचती है.. पर यहाँ कहना शर्तिया जरुरी है... मै और  मेरे जैसे लोग अंतर्मन की आवाज को ख़ामोशी के अल्फाज में कहना जानते हैं.. अपने चित्त के आसपास रखने की मेरी छोटी सी अर्जी पर इतना बुरा मान गए... माफ़ कर देना भाई... शब्दों की माला जपने और बाजीगरी दिखाने  की कभी जरुरत नहीं हुई... और न दुनिया को बदलने की रत्ती भर कोशिश की... हम तो इतना भर लम्हा को रौशन करते हैं कि अपनी यायावरी कायम रहे... बाकी कुछ रहे न रहे.... आज भी खोने को इतना कुछ बचा है कि अपने आसपास अनगिनत मंजर बिखरा हुआ है...

..... फिर आगे.... राहुल 

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