Rahul...

27 December 2011

जाते-जाते- 3

पहली बार ऐसा ही हुआ. लगा जैसे आप कभी सिर्फ अपने में निमग्न नहीं हो सकते. कई लम्हा ऐसा है जो सिर्फ आपको डूबों सकता है. इतना तो नहीं जानता था कि जब वो पल आने वाला था तो सब कुछ बस यूं ही था. आज कुछ महीनों के बीतने के बाद जिस मुकाम पर खड़ा हूँ.. सब सपनों सा अदृश्य होता जा रहा है. अपनी नादानियों कि वजह से कितनों को तकलीफ दी... कई वाकई नाराज हुए. यहाँ यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि कोई गहरे अन्दर तक इतना आ गया कि सब मुझ पे टूट गए. क्या करते ? हमने अपनी आवाज को कभी मरने का मौका नहीं दिया. क्या फर्क पड़ता है... आख़िरकार कई लोग इतना ही समझे कि कुछ मामला है. आप अंदाज नहीं लगा सकते कि हर आदमी कैसे बेपर्द होकर सब कुछ कहने सुनने लगा. सामने जो आप तस्वीर देख रहे हैं... यह एकदम हमारी कहानी कहने जैसा आवरण में घिरा है. रंग तो उसके चारों तरफ बिखरा है.. पर खुद के हालात पर एक कतरा तक नहीं. मैंने हमेशा उस सिस्टम को तोड़ दिया जो कैदखाने से ज्यादा कुछ नहीं होता. क्या किसी को अपने अंतर्मन में छुपा लेना अपराध है ?  कैसे न करते अपराध..... ये सच है कि इसकी सजा आजीवन मुझे मिलती रहेगी. मुझे हमेशा ये मंजूर रहेगा..
                                            अभी और.... राहुल

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