Rahul...

23 December 2011

जाते-जाते

 
साल २०११ अवसान की ओर है. कुछ दिन, कुछ पल के बाद फिर उतनी सी तलाश की जद्दोजहद में डूब जायेंगे हम सब. वर्ष की शुरुआत में हमने यकीनन कुछ भी तय नहीं किया था. किधर जाना है... और किस मकसद को जीना है ? ऐसा भी नहीं था कि अपनी मर्जी से कुछ अलग  सोच लेते. समय ने कभी इतना मौका नहीं दिया. हमारे जैसे लोगों का इतना ही अंजाम होता है... मुझे यही लगा.. आप कुछ फासला तय नहीं करते.. पर कभी-कभी उनके लिए अकेले चलना पड़ता है... जो आपके सफ़र में कभी नहीं होते.. लेकिन वो हमेशा आपके हमसाया होते हैं.... न तो इसे कोई देख सकता है और न ही कोई इसे समझ सकता है..  इस साल हमसे बार-बार एक ही सवाल पूछा गया... मैंने हर बार जवाब दिया.. जब मेरे सामने अपने लिए एक सवाल आया तो सच मानिए.. मौसम बीत चुका था. हमने अपने हिस्से का वो खाली पन्ना भी खो दिया.. जिस पर कभी भी  मेरे लिए कुछ भी नहीं लिखा गया. वैसे कितने अधूरे पन्ने आज भी मेरे साथ हैं.. मै तो हमेशा यही चाहता था कि इन्हें उन्मुक्त आसमान में छोड़ दूं .. पर इन्होंने मुझे सीने से लगाकर रखा. आज जब मैं इन्हें फिर से अपनी बात दोहराता हूँ तो कोई कुछ नहीं बोलता. इन्होंने भी वही किया.....

 .......फिर आगे ....... राहुल 

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