Rahul...

28 January 2012

नासमझ मन

अनाम मौसम सा
तेरा नाम
उमड़ते बादलों सा
तेरा चेहरा
कुछ पत्तियों के
आँख खुलने जैसी
तुम्हारी बातें...
अधखुली..अनकही 
रोज बदलती तारीखों में
कोई एक दिन सा
अब भी होता है
मेरा दिन..
किश्तों में आते-जाते
बेपरवाह मौसम
 नहीं जानते
आसपास.
तुम नही..

कभी नहीं..
रोज बदलती तारीखों में
बेमौसम
बरसती..
गुनगुनाती धूप
 इतने कालचक्र को जीते
कहानियों में
नासमझ मन
जैसा होता है
अब भी मेरा बसंत..
                                                     राहुल






2 comments:

  1. उत्कृष्ट कविता
    कविता के साथ चित्र भी बहुत सुन्दर लगाया है

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  2. ऐसी बसंत .. बस मुस्कराहट आ गयी ..बसंती..

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