Rahul...

10 January 2012

तुम कहते थे ना....


कैप्शन जोड़ें
 मीठी सी तन्हाई में ...
मेरे पास छोड़ जाते हो
कुछ गुमसुम सा सवाल
मै सोचती हूँ
तुम्हें क्या जवाब दूं..
क्या जवाब देना चाहिए...
मुझे याद आता है
तुम्हारा वो अंतहीन फासला
तुमने अचानक रोप दिया
मेरे सीने में...
मै हर बार तेरे लिए...
एक सवाल ही तो जीती हूँ
न जाने कब से ..
तुम आज भी...
अनमने से उदास जंगल को
शाप क्यों देते हो...
वो तो सिर्फ शरीक था..
अपनी असहाय सी
अनसुलझी गाथा का
तुम कहते थे ना....
मेरी टूट चूकी साँसों...
की दरख्तों में भी
मिल जाएगा जन्नत के निशां..
तुम कहते थे ना...
उसी अंतहीन फासले के
कतरे को जी लेना
सच तुमने कितनी
मासूम सी सजा
तय की है
मेरे लिए....
                                                                      राहुल

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया लिखा है |

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  2. अनसुलझी गाथा के लिए मासूम सी सजा ..कितना मासूम है..

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