Rahul...

16 July 2012

मीठी महक जैसी...


सुख की पीड़ा में
खुशबू के तजुर्बे 
मन के उजास की
परछाईं से
लबालब भरी
तुम्हारी बेतरतीब नींदें ...
तुम्हारे 
निर्मोही सपने...
 कुछ अधूरी
प्रेम कविताओं
जैसी तुम
सीने की ताप से
बनी आंच में...
जब यदा-कदा 
दिख जाती हो ....
ठीक...
कच्चे घड़े की
मीठी महक जैसी...
बेतरतीब तुम
खिलखिलाती हुई
कुछ पल लेकर
मेरे हिस्से का
अपने घरौंदे में
 डूब जाती हो...
ये जानकर भी...
अनंत नींदों में
डूबी...
कुछ अधूरी
प्रेम कविताएँ
दुःख की हथेली पर
महाकाव्य बन जाया करती है....
आत्मा की यायावरी
करते-करते
जब कभी
 सरहदों के पार
उतरते हैं...
कच्चे घड़े की
मीठी महक जैसी...
बेतरतीब.... तुम
आह्लादिनी पुंज 
राधा जैसी...
तुम........ 
दुःख की हथेली पर 
बने महाकाव्य में 
सवाल छोड़ जाती हो....
कृष्ण....
.चले जाओगे...?


                                              राहुल

8 comments:

  1. तुम........
    दुःख की हथेली पर
    बने महाकाव्य में
    सवाल छोड़ जाती हो....
    कृष्ण....
    .चले जाओगे...?
    आशा और उत्साह जगाती एक अनुपम कृति....!

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  2. वाह..............
    कुछ अधूरी
    प्रेम कविताएँ
    दुःख की हथेली पर
    महाकाव्य बन जाया करती है....

    बेहद खूबसूरत!!!!
    आप वाकई "दिल से" लिखते हैं.

    अनु

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  3. सुन्दर अहसास लिए..
    बहुत सुन्दर रचना..

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  4. दुःख की हथेली पर
    बने महाकाव्य में
    सवाल छोड़ जाती हो....
    कृष्ण....
    .चले जाओगे...?

    सुंदर अभिव्यक्ति ...!!

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  5. मेरे दिल के हर कोने में
    महकती हो तुम
    बनकर गंधक
    क्या युही छाती रहोगी तुम
    मेरे मन में आधारशिला बनकर .....

    क्या खूब है आपकी यारी शब्दों से बहुत खूब राहुल दिल से

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  6. सुख की पीड़ा के बावजूद मीठी महक बसती है साँसों में..अधूरी सी लगती है कविताएं पर होती है पूरी..बस एक ज्वार..

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  7. रचना पसंद आयी , कुछ अलग स प्रभाव छोड़ने में समर्थ !

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