Rahul...

06 July 2012

तुमने सुना है...?

अगाध नेह...
के निष्कलंक सम्मोहन में
जीवन का संगीत
बोती एक स्त्री.......
निष्ठुर होते
चाँद की देहरी पर
एक रात
मांगती स्त्री....
समतल...सपाट...
धूर्त आइने में
हिमालय सी
जुर्रत
जीती स्त्री..........
आखिर कैसी होती है ?
देह कथा में
वासनाएं पिघलती है
आइना
अन्धकार में डूब जाता है
तब एक स्त्री का
अलिप्त प्रेम
वैराग्य को जीता है...
जीवन का संगीत
बोती स्त्री का...
कोलाहल तुमने सुना है...?
 कभी हिमालय से पूछो..
 कहाँ है ...
तुम्हारी जुर्रत ?
कहाँ है वो आइना ?
जहाँ स्त्री का अगाध नेह 
उसी अन्धकार में
अनवरत...फिर से
 वैराग्य को जीता है...
क्या सच में..
जीवन का संगीत
बोती स्त्री का...
कोलाहल तुमने सुना है...?

                                                                  राहुल





4 comments:

  1. देह कथा में
    वासनाएं पिघलती है
    आइना
    अन्धकार में डूब जाता है
    आपने सही कहा!
    --
    बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!

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  2. प्रेम..प्रेम तो अलिप्त होकर भी दीप्त होता है..एक भी किरण बस छू ले...अगाध नेह...निष्कलंक नेह...

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  3. हैरान हूँ आपके कमेंट्स देखकर .....:)
    अक्सर मेरे अनुवाद वाले ब्लॉग पे कोई आता नहीं
    इमरोज़ जी ने ख़त में अपने खतों का हिंदी अनुवाद माँगा था इसलिए एक साथ सरे अनुवाद एक ही दिन पोस्ट कर दिए और आप भी कमाल हैं सभी पे एक साथ कमेंट्स ......:))

    समतल...सपाट...
    धूर्त आइने में
    हिमालय सी
    जुर्रत
    जीती स्त्री..........
    आखिर कैसी होती है ?

    शायद हीर सी या फिर सोहणी सी ...:))

    बहुत अच्छा लिखते हैं ....

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  4. गहरे भाव लिए स्त्री व्यथा व्यक्त करती
    भावमयी अभिव्यक्ति....

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