Rahul...

04 July 2012

धुआं मरासिम है.......

यह एक जीवंत खबर है
जो कहीं छपी है
आग लील रहा है
धुआं को..
धुआं जी रहा है
घुटन को.........
आग अनहद है....
पर....
 बेतहाशा है...
उसे ख़बरों में
जलने की लत लग गयी है..
आग बरसती है
पन्ने भींगते हैं
धुआं आमादा है...
पर बेवश है
उसे घुटन में
जीने की जिद हो गयी है...
धुआं मरासिम है
यह सब में शामिल है
अखबार के
सभी पन्नों पर
आग.. हर दिन..
बेतहाशा
जलती हुई
सुर्ख रंगों में
राख होती है..
धुआं..हर पल
जीवंत खबर है..
उसे अब भी 
घुटन में 
जीने की जिद है...
जले पन्नों पर
धुआं जख्म सिलता है..
यह मरासिम है
ये सब में शामिल है...
यह एक जीवंत खबर है
जो कहीं छपी है........

                                                              राहुल

4 comments:

  1. जीवंत खबर है तो मानना ही पड़ेगा कि पत्थरों को भी रोना सिखाया जा सकता है..मरासिम है..लत लगेगी ही..

    ReplyDelete
  2. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  3. ..उसे अब भी
    घुटन में
    जीने की जिद है...
    जले पन्नों पर
    धुआं जख्म सिलता है..
    यह मरासिम है
    ये सब में शामिल है...
    यह एक जीवंत खबर है
    जो कहीं छपी है........
    ....yahi jivatta insaan ko insaan banati hain
    bahut badiya saarthak chintan karati rachna..

    ReplyDelete
  4. सार्थक भाव व्यक्त करती..
    प्रभावशाली रचना...
    :-)

    ReplyDelete