Rahul...

15 July 2012

मंगपो और कविगुरु......

 कुछ जगहों को देखना कहानियों को तल्लीनता से पढ़ने जैसा है.. ये वैसे ही होता है ... जब आप कुछ  मन में रखते हों... और दूर-दूर तक उसके पूरे होने की गुंजाइश न बनती हो.... खूबसूरत किस्से.. अतीत में खुलता वर्तमान का जर्जर पन्ना... जब आप पढ़ रहे होते हैं तो हर्ष-विषाद की बहुरंगी मगर दारूण व्यथा सुनाई देती है.....दास्ताँ बिखेरता.....
             पिछले 9 मई को मै एक ऐसी जगह पर गया... जहाँ के बारे में बहुत कम कहानियाँ है.. न के बराबर चर्चे हैं...यह एक ऐसी जगह है...जहाँ लोग घूमने के इरादे से नहीं आते.. यह कोई सैरगाह नहीं....वहां जाने से ठीक एक दिन पहले यानी ८ मई को जब देर रात ऑफिस में मुझे इसकी जानकारी दी गयी और कहा गया कि. इस ख़ास कार्यक्रम को कवर करने की महती जिम्मेवारी आपके सर पर है....मुझे यह भी बताया गया कि आपके साथ दिग्गज फोटो जर्नलिस्ट पुलक कर्मकार रहेंगे..ये भी कहा गया कि सबेरे ही निकल जाना है.. गाड़ी का इंतजाम हो गया है... मैंने हामी में सर हिलाया और ऑफिस से रुखसत हुआ...घर जब लौटे तो काफी रात हो चुकी थी..   मैंने अपने सहकर्मी योगेन्द्र रॉय जी को भी अपने साथ चलने को कहा... तो थोड़ी सी हिचक के बाद वे राजी हो गए...शेष रात का सफ़र कच्ची  नींद में डूबा.....उस वक़्त रात के 2.40 होने को थे. और बाकी रात ढलते-ढलते नींद ख़त्म हो चुकी थी ...भोर ने दस्तक दे दी थी.....
           मंगपो....मतलब दार्जिलिंग  का एक छोटा सा गाँव ...जहाँ हमे जाना था. सिलीगुड़ी से गंगटोक जाने के रास्ते में करीब ४० किलोमीटर के बाद मंगपो आता है...सिलीगुड़ी से करीब ३० किलोमीटर के बाद दाहिने तरफ का एक रास्ता तराई- डूअर्स को जाता है.. जबकि मुख्य सड़क पर  कुछ आगे जाने पर रानी पुल पार करने के बाद का  रास्ता कालिम्पोंग की तरफ... वहाँ से थोड़ी दूर बढ़ने के  साथ  बायीं तरफ का रास्ता मंगपो चला जाता है... और फिर दार्जिलिंग ... मंगपो और दार्जीलिंग के बीच की दूरी ३५ किलोमीटर है.....
आप सोच रहे होंगे कि आखिर मंगपो में ऐसा क्या होने जा रहा है.... दरअसल मंगपो में जो कार्यक्रम था और जिसके लिए इतनी मगजमारी चल रही थी.. उसको कवर करने कोलकाता से भी तमाम मीडिया ग्रुप के प्रतिनिधि सिलीगुड़ी आ चुके थे. मै अपनी टीम के साथ जिस गाड़ी में था, उसमे कई और लोग भी थे. हमें यह भी बताया गया था कि इस कार्यक्रम का उद्घाटन उत्तर बंग उन्नयन मंत्री गौतम देव करेंगे....हिल में यानी दार्जीलिंग में तृणमूल और गोरखा जन मुक्ति मोर्चा के बीच सियासी अदावत में पहले तो ये खबर आई कि गोरखा जन मुक्ति मोर्चा इस समारोह का बहिष्कार करने जा रहा है...लेकिन बाद में  कर्सियांग के विधायक डॉ. रोहित शर्मा ने एक बयान जारी कर स्पष्ट कर दिया कि गोरखा जन मुक्ति मोर्चा अब इस समारोह में शामिल होगी...वैसे भी राजनीतिक हलकों में इसे काफी अहम् माना जा रहा था. और जब बात गौतम देव के खुद वहां मौजूद रहने की हो तो मामले की गंभीरता समझ में आती है..  गौतम देव.... यानी वेस्ट बंगाल की अग्निकन्या व माँ-माटी-मानुष की सरकार की  मुखिया  ममता बनर्जी के ख़ास और भरोसेमंद सिपहसालारों में से एक...शांत.. संयत से दिखने वाले गौतम देव की पूरे उत्तर बंगाल में तूती बोलती है....
         सिलीगुड़ी से करीब ८ बजे के आसपास हमारा कारवां चला...धीरे-धीरे शहर पीछे छूटता गया और हम सब पहाड़ पर आगे बढ़ने लगे. सेवक रोड का अंतिम पड़ाव पार करने के बाद तीस्ता नदी दिखने लगी.. तीस्ता के बारे में मैंने काफी सुना था. खासकर भूपेन हजारिका के गीतों में तीस्ता का जिक्र मिल जाता है...एक मैगजीन के कवर स्टोरी में मैंने भूपेन हजारिका  के बारे में पढ़ा था... उन्होंने कहा था कि तीस्ता हमेशा मेरे सीने में मचलती रहती है... भूपेन दीवानगी की हद तक इस कातिल नदी की ख़ूबसूरती पर फ़िदा थे.... तीस्ता की भाव-भंगिमा को देखकर मै थोड़ा चकित था..  जबकि मौसम के हिसाब से अभी उसमे पानी ज्यादा नहीं था.  फिर भी तीस्ता के तेवर में कोई कमी नहीं दिख रही थी.. हमारे फोटो जर्नलिस्ट पुलक कर्मकार इसके बारे में मुझे बताने लगे... उन्होंने कहा कि अभी तो कुछ भी नहीं है.. अगर आप बारिश के वक़्त आयेंगे तो यही नदी इतनी खौफनाक हो जाती है कि इसे देखकर मजबूत कलेजे वाले लोगों का भी  मिजाज कांपने लगता है.. हम सब काफी तन्मयता से सब देख--सुन रहे थे. मगर पुलक दा अपने को रोक नहीं सके...और तीस्ता की उछाल मारती लहरों को देखकर अपने शानदार फीचर से लैस निकोन-d-60 को निकाला और शुरू हो गए... उनकी इस अदायगी को मै अपलक देख रहा था . धीरे-धीरे हम लोग पहाड़ की ऊँचाइयों पर पहुँच रहे थे.. और तीस्ता आँखों से ओझल हो रही थी....चारों तरफ सिर्फ पेड़ ही पेड़.... और कहीं कहीं दिखती छोटी मोटी बस्तियां......सिर्फ ४० किलोमीटर के फासले में मौसम पूरी तरह बदला हुआ था... ठण्ड का एहसास बदन को डूबोये जा रहा था. फिर भी मौसम काफी खुशनुमा था..... जब हमलोग मंगपो पहुंचे तो मीडिया की चहलकदमी दिखी. जानकारी मिली कि दार्जीलिंग और गंगटोक से भी हमारे भाई-बंधु लोग आये हुए हैं..धीरे- धीरे काफी लोग जुटने लगे. अभी तक गौतन देव का आगमन नहीं हुआ था.. हम अपनी टीम के साथ इधर-उधर टहलने लगे.. कार्यक्रम के बारे में कुछ जानकारी हासिल की .

              दरअसल... हम सब लोग कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर की १५२ वीं जन्म शताब्दी समारोह के मौके पर मंगपो में जुटे थे... इसी जगह पर कविगुरु ने अपनी जिन्दगी के कई अहम् साल बिताए थे.जिस मकान में रहकर उन्होंने एक से बढ़कर एक कालजयी रचनाओं को लिखा...रवींद्र संगीत... नृत्य नाटिका.... काव्य संकलन..... उपन्यास और भी बहुत कुछ.... वो मकान अब भी कविगुरु को अपने आगोश में समेटे काल के मुहाने पर चुनौती बनकर खड़ा था. मै और पुलक दा जब उस घर के अन्दर दाखिल हुए तो पहले से एक दो लोग वहां चहलकदमी कर रहे थे. हर कमरें में उनकी कृति बिखरी हुई थी. जर्रे- जर्रे में अब भी कविगुरु समाहित थे. दीवारों पर टंगी उनकी मूल पेंटिंग जो फ्रेम में जड़ी हुई थी. उनकी कवितायें... परिजनों के साथ मंगपो की तस्वीरें सब कुछ अतीत में ले जाने पर आमादा थी.. और हम गए भी... एक बार फिर पुलक दा का निकोन चमकने लगा. सभी कमरों में घूमने के बाद बाहर निकले....मै समझ नहीं पा रहा था कि आखिर कविगुरु की यह समृद्ध  विरासत दुनिया से कटी हुई क्यों है ?  खैर... थोड़ी देर बाद गौतम देव आये.... मीडिया के हुजूम ने उन्हें घेरा.....और सवाल दर सवाल....गिरने लगे...समारोह के उद्घाटन के पहले ही मंत्रीजी सरकारी औपचारिकता पूरी कर लेना चाहते थे. और उन्होंने किया भी.... इसमें अच्छा-खासा वक़्त लगा.... यहाँ से निपटने के बाद उन्होंने  रवीन्द्र स्मृति भवन में जन्म शताब्दी समारोह का विधिवत उद्घाटन किया.... उद्घाटन के वक़्त शान्ति निकेतन से आये कलाकारों ने समवेत स्वर में कविगुरु को समर्पित भावपूर्ण प्रार्थना से नमन किया... मै इन सब चीजों को जज्ब कर रहा था..
              अपने संबोधन में गौतम देव ने कहा कि यह एक पुण्य भूमि है...इसकी विरासत को बचाने की जरूरत है..कुछ और शब्द कहने के बाद उन्होंने भरे मंच से यह कहा कि अब यह मकान सरकार की संपत्ति होगी..और रवीन्द्र स्मृति भवन में अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च सेंटर खोला जाएगा.... ताकि उनकी कृतियों पर रिसर्च करने वालों को किसी तरह की दिक्कत न हो....इसके साथ ही उन्होंने एक भारी-भरकम आर्थिक पैकेज की भी घोषणा की.... घोषणा होते ही कोलकाता, शांति निकेतन और आसपास से आये कलाकारों ने उल्लासपूर्वक इसका स्वागत किया....फिर एक-दो लोगों के संबोधन के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम का आगाज हुआ.... भाषाई दिक्कत के बाद भी जितना मै सुन पा रहा था, उससे ज्यादा ह्रदय महसूस कर रहा था... खासकर रवीन्द्र संगीत को लेकर मै काफी उत्सुक था...शान्ति निकेतन और कोलकाता से आये कुछ नामचीन गायक-कलाकारों ने पूरे समारोह की रंगत बदल कर रख दी थी..यकीनन मै उसी में खो गया था.   इसी बीच पुलक दा ने हमसे यह पूछा कि कैसे स्नैप चाहिए आपको ? आप बता दें तो ज्यादा अच्छा होगा... मैंने उन्हें संक्षेप में अपनी बातें कही....धीरे-धीरे सांस्कृतिक कार्यक्रम परवान पर था...वहां पर हमारी टीम के कई लोग बाहर आ- जा रहे थे... समय के गुजरने के साथ ही ठण्ड ने अपना असर दिखाना शुरू किया...... मुझे भी लगा कि अगर हम सब समय से नहीं लौट सके तो काफी फजीहत हो जाएगी.... खासकर मुझे ऑफिस लौटकर रिपोर्ट भी फाइल करनी थी और कोलकाता डेस्क को भी कॉपी भेजनी थी.. जब मै बाहर निकला तो पुलक दा कई लोगों के साथ चाय के साथ बहसतलब में मशगूल थे. उन्होंने मुझे भी चाय के लिए कहा.... हालांकि इससे पहले मै कई बार चाय पी चुका था. पर सब बेमजा और वाहियात.....खैर इस बार कुछ ठीक ठाक थी...चाय को लेकर अक्सर पुलक दा और मेरे दोस्त मुझे ख्याल दिलाते..दरअसल सभी को पता था कि चाय मेरी कितनी बड़ी कमजोरी है...
                       मैंने पुलक दा से कहा कि अगर हम समय से ऑफिस नहीं पहुंचे तो देर हो जाएगी.... रवीन्द्र स्मृति भवन के बाहर मीडिया की फ़ौज अब वापस लौटने के लिए उतावली हो रही थी... पुलक दा भी अपनी गाड़ी और ड्राइवर  को खोज रहे थे...इसी बीच कुछ लोगों से मिलने के बाद हम सब अपनी गाड़ी में आ गए...मौसम का असर साफ़-साफ़ दिख रहा था. जबकि वापस लौटने की जद्दोजहद  में मै ये अनुमान लगा रहा था कि सिलीगुड़ी पहुँचते-पहुँचते शाम के सात बज जायेंगे.. जब गाड़ी वहां से चली तो सब कुछ साफ़-साफ़ दिख रहा था....उसी ढलान भरे रास्ते पर एक-दो लोग दिख जा रहे थे. स्कूल से लौटते कुछ बच्चे तो जंगल से लकड़ियाँ लेकर लौटतीं पहाड़ की मासूम महिलाएं... सच...आज भी पहाड़ों में तमाम फजीहतों के बावजूद आम जनजीवन कितना नैसर्गिक है... सहज और सौम्य.... धीरे-धीरे हम नीचे आ रहे थे और कहीं-कहीं छोटी-छोटी दुकानें और बस्तियां नजर आने लगी थी..अब भी सिलीगुड़ी पहुँचने में ३० किलोमीटर की दूरी थी... खैर.... रानी पुल पार करने के बाद लगा कि शायद हम समय से पहुँच जाएँ... इसी बीच पुलक दा बंगला मिक्स हिंदी में कुछ-कुछ बोलकर मन को हल्का कर रहे थे...जब हम सिलीगुड़ी पहुंचे तो शाम के ठीक ६.३० बजने को थे .... ऑफिस में दाखिल होने के बाद थोड़ी सी थकान पसरने लगी... पर कर्मवत होना था. रिपोर्ट फाइल करनी थी................................

                                                                                                                                         राहुल

3 comments:

  1. आपसे सहज आशा रहती है कि आप कुछ ऐसा ही संस्मरण हम तक लायें जहां तक शायद हम पहुँच भी न पाए.आपको कर्मरत होने का लिए सुखद अवसर मिला है कि आप स्वयं रु-ब-रु होते हैं और हम केवल पढ़कर ही स्वयं को संतोष देते हैं...कविगुरु को हार्दिक नमन..

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  2. बहुत सुन्दर पोस्ट............
    गुरुदेव को नमन...

    आपका आभार
    अनु

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  3. बहुत बेहतरीन पोस्ट
    टैगोर जी को सादर नमन
    :-)

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