Rahul...

24 March 2012

जो दुपट्टा ख़रीदा है ..

सिमटी..सहमी
बातों की पोटली लिए
हम कारवां होते गए
शब्दें राह चलती गयी
नहीं था नाम सड़कों का
मकानों से भी
गायब थी तख्तियां
तेरे लिए
जो दुपट्टा ख़रीदा है ..
सिमटी.. सहमी
बातों की पोटली में
कसमसाती रही धूप
उस दुपट्टा छूने को
बस कोई..
शब्द पीछे रह गया
गायब तख्त्तियों वाले
अनसुने मकानों में
पड़ाव डाले शब्द
जागते रहे
बस कोई...
आलिंगन चुभती रही
तेरे दुपट्टे को..
हमने जस का तस
रख छोड़ा है..
सजिल्द..और
उमस से बचाकर
शब्दें राह चलती गयी  
हम तो कारवां होते गए

                                                    राहुल

5 comments:

  1. शब्दों की राह पर ख़ूबसूरत अहसासों से लबरेज़ सुन्दर रचना..अलग सुकून देती हुई..

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  2. बहुत ही सुन्दर ,गहन विचार अभिव्यक्ति...
    सुन्दर रचना.....

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  3. ये एहसासात का कारवां है ... और जब इन्हें शब्दों के पाँव लगते है .. तो ये थमता नहीं ... उम्दा रचना .. !!

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  4. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    सुंदर शब्दावली प्रेरणादायक कविता ....रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

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  5. शब्दों की अपनी राह है , वो चलती ही रहेंगी..बस कारवाँ का साथी मिल जाए तो सफ़र को पंख लग जाता है ..किसी भी उमस या सीलन से परे..

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